बात जो भी थी सच सच बता तो सकती थी
मुझे,सबकुछ न सही पर कुछ बना तो सकती थी
प्यार करना शायद मुझे नही आता, मालूम है,
तुम्हे तो आता था,सिखा तो सकती थी ।
जिसे तुम चाहती थी,उन्हें जानता था मैं
मेरे ही दोस्त हैं, पहचानता था मैं
मेरी आँखों पे पट्टी बंधी थी,ये माना मैंने
तुम्हारी तो खुली थी,रास्ता दिखा तो सकती थी।
शुभम पाठक