जिसके लिए अपनी नींद चैन खोया था
जिसके लिए कई रात न सोया था।
उसको तो मेरी कदर ही नही।
जिसके लिए मैं पहली और कई बार रोया था
अपने आप को आंसुओ से भिगोया था
उसको तो मेरी फिकर ही नही।
जिसके लिए लाखों सपने सँजोया था
अपने मन मे उसके प्रेम का बीज बोया था
उसपर तो मेरे प्यार का असर ही नही।
जिसके लिए खुद को ग़मो में डुबोया था
वो आज किसी और के लिए रोया है
उसके दिल मे मेरा तो बसर ही नही।
शुभम पाठक