एक और साल..
वक़्त इतनी तेजी से बीता की पता ही न चला
एक और साल निकलना था, निकल ही गया।

इन्तेजार करते रहे लोग आंख बंद करके साल भर
वक्त को तो बदलना ही था, बदल ही गया।

समय को बड़े हल्के में ले लिया था लोगों ने
बर्फ को तो पिघलना ही था, पिघल ही गया।

जिन लोगों से उम्मीदे बहुत खास थी कभी
उनका पता तो चलना ही था,चल ही गया।

जब सारी दुनिया पीछे पड़ी थी हराने को मुझे
लोहे को तो गलना ही था,गल ही गया।

बड़े प्यार से रखा था तेल लोगों ने दिए में
चिराग को तो जलना ही था,जल ही गया।
शुभम पाठक

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