जो तेरे आने के पहले था, वही तेरे जाने के बाद हूं मैं
इतनी आसानी से नही बुझने वाला, किसी घने जंगल की आग हूं मैं।
सबने कहा कि तेरे जाने के बाद टूट जाऊंगा मैं,
गर देख रही है तो ध्यान से देख, अब भी वैसा आबाद हूं मैं।
ना जाने कैसे लोगों ने इतना कमजोर समझ लिया मुझे,
थोड़ा कमजोर जरूर हुआ हूं पर अब भी फौलाद हूं मैं।
और, अंजाम तेरे सितम का जो होगा सो देखा जाएगा
अभी तो ज़लज़ला सा एक, ताकतवर आग़ाज़ हूं मैं।
भूलने की कोशिश तू लाख करेगी न भूल पाएगी मगर,
इतनी आसानी से ना भूलने वाली याद हूं मैं
और तुझे आसानी से मिल गया हूं तो तू हल्के में रही,
ना जाने अभी कितनों की फ़रियाद हूं मैं।
शुभम पाठक