संयम की परिभाषा।

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Shristy Jain
Mar 15, 2019   •  943 views

संयम शब्द की एक बेशकीमती परिभाषा है। इसमें 3 शब्द है। स मतलब समता, य मतलब यतना, म मतलब मौन। मन में समता, काया में यतना, वाणी में मौन। इन तीनों का समन्वय ही संयम है।

साधक के लिए संयम तो कल्पवृक्ष के बराबर है। संयम तो साधुता का प्राण है संयम जिन शासन का आधार है व पहचान है। संयम बिन साधुता निषप्राण है। जैसे कागज पर मुहर लगते ही वह नोट बन जाता है इसका मूल्य शत गुणित हो जाता है, संयम की मोहर से व्यक्ति साधुता की कोटि में आ जाता है। संयम का मतलब स्वयं को साधना, बुराई से परे होना और भीतरी व्यक्तित्व को प्रकट करना। संयम सुरक्षा है

भारतीय संस्कृति में सदा काल संस्कार, सादगी व संयम का गुणगान हुआ है पर आज इस भौतिकवादी युग में ऐशपरस्ती के कारण जीवन की ट्रेन असंयम की पटरी पर गतिमान है तभी जीवन अशांत है। संयम का संबंध पांचों इंद्रियों से है। इंद्रियों से हम संयम के पथ पर भी चल सकते हैं। और असंयम के पद पर भी। पुण्योदय से मिली हुई इंद्रियां हमें आज किस मोड़ पर ले जा रही है यह हमें देखना है।

इंद्रियों के संयम से आत्मदर्शन संभव है। आत्मा का इंद्रियों के पीछे चलना असंयम है। संयम से जीवन उन्नत होता है। जब आप अपनी सभी इंद्रियोंं को अपने वश में कर लेते हैं तो आप स्वयं पर संयम प्राप्त कर लेते हैं जो कि एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती हैं। ज्यादातर लोग अपनी इंद्रियों के जाल में फंस कर अपना जीवन बेकार कर देते हैं और अपने जीवन का असली महत्व भूल जाते हैं। जिस व्यक्ति में स्वयं पर संयम प्राप्त कर लिया उसने इस लोक में रहकर ही मोक्ष को प्राप्त कर लिया।

आप छोटी-छोटी चीजेंं करके स्वयं पर संयम पा सकतेे हैं। जैसेे अपनी जीभ के वश में ना रहते हुए सात्विक भोजन करना, अपनी आंखों को ईश्वर का दर्शन कराना, बुरे बच्चों को ना ही सुनना और ना ही बोलना।यदि आप इस प्रकार केे कृत्य करेंगे तो आपका मन धीरे धीरे संयम की ओर अग्रसर होगा।

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