कनपटी
मोहरा
दिवगृह
प्रभु निवास
देवथान
धार्मिक स्थान
देवालय
देवमंदिर
देवस्थान
मंदिर
गिरजा घर
देवगृह
देवतालय
दिहरा
बुतखाना
Tabernacle
The square plan or quadrature is relieved by three or five bays on each face from base to top, the relieved parts being called rathas, making the temple tri ratha or pancha ratha, as the case may be.
वर्गाकार योजना या पाद स्थिति को आधार से शिखर तक हर पृष्ठ पर तीन या पाँच खड़ों से उभारा जाता है. ये उभरे हुए भाग रथ कहलाते हैं, और वे मंदिर को त्रिरथ या पंचरथ रूप देते है.
The Brhadisvara temple, a splendid example of Chola architecture was built by Emperor Rajaraja.
ब़ृहदेश्वर मंदिर चोल वास्तुकला का शानदार उदाहरण है, जिनका निर्माण महाराजा राजा राज द्वारा कराया गया था ।
A bulbous ornament terminating the tops of Indian temple
भारतीय मंदिरों के छत के शिखर का गोल आभूषण
Cave 16 is the Kailasa complex, where the main part is the monolithic vimana temple of Kailasa with cave - temples on the scarp of the circumambulatory passage as in the case of the Lankesvara 16a.
गुफा क्रंमाक 16 कैलास परिसर है, जहां मुख्य भाग कैलास का एकाश्मक विमान मंदिर है, जिसके साथ प्रदक्षिणा पथ के कगार पर गुफा मंदिर हैं जैसे कि लंकेश्वर 16 ए के मामले में ।
The beauty of the rock - cut sculpture of the temple is reflective of the artistic tastes of the erstwhile Pallava rulers.
इस मंदिर की पत्थर को काट कर की गई शिल्पकारी की सुंदरता पूर्व पल्लव शासकों की कलात्मक रुचि को दर्शाती है ।
The people found an alternative instead, and built a college nearby in the name of saint Haridas, the founder of the temple.
उन्होंने इसका विकल्प खोज निकाल और नजदीक ही मंदिर के संस्थापक संत हरिदास के नाम पर कॉलेज बना ड़ाल.
He commanded the then priest of the temple to perform some miracle.
उसने देवी के चले को देवी का कोई चमत्कार दिखाने को कहा.
In the case of some cave - temples, like the Siva cave - temple at Malai - yadippatti, the cave - temple at Pillaiyarpatti, and the cave - temple in Muvaraivenran Ramanathapuram district the shrine part occupies, as it were, a corner of the oblong mandapam, which thus encloses it on two sidesin front and on one of the flanks, suggesting a partial copy of a model with a central shrine and a surrounding mandapam with a greater part of it in front.
कुछ गुफा मंदिरों के मामले में, जैसे कि मलैयादिप्पट्टी स्थित शिव गुफा मंदिर, पिलैयारपट्टी स्थित शिव गुफा मंदिर, पिलैयारपट्टी स्थित गुफा मंदिर और मुवरैवेनरन जिला रामनाथपुरम में गुफा मंदिर में मंदिर वाला भाग दीर्धायत मंडपम में स्थित है, जिससे, इस प्रकार मंडप कक्ष को दो पार्श्वों - सामने से और एक बगल से घेरता है जो कि एक केंद्रीय मंदिर कक्ष और आसपास घेरते मंडप जिसका अधिकांश भाग सामने की और होता है की आंशिक अनुकृति का संकेत मिलता है ।
Since the vimana form is the most characteristic and distinctive feature of the southern temple as opposed to the characteristic prasada temple of north and central India, it would be useful in this context to define it briefly and understand its general features, as also the variations of its form, plan and rise.
चूंकि उत्तर और मध्य भारत के विशिष्ट प्रसाद मंदिरों के विपरीत विमान रूप दक्षिणी मंदिरों का सर्वाधिक और स्पष्ट लक्षण है, इसके इन संदर्भ में इसको संक्षेप में परिभाषित करना और उसके सामान्य लक्षणों और उसके रूपाकार, विन्यास और उत्थान के विविध प्रकारों को भी समझ लेना उपयोगी होगा ।
The religious rites expected of a Virashaiva were simple: he should apply bhasma. or holy ashes on the forehead ; he should give up meat - eating and wine - drinking and become a perfect vegetarian ; he should always speak the truth and avoid stealing and killing ; he should not be greedy ; nor should he be lazy, because it is imperative that every person should take up a profession and work hard for his living ; he should avoid going to a temple or a holy place, because the body itself is the temple and the place where Shiva ' s men live is itself a holy place ; even if a person lacks time or resources to perform worship, that should not worry him, for what is of real importance is the faith he has in God.
वीरशैव मत में कोई जटिल कर्मकांड भी नहीं है: वीरशैव को अपने माथे पर पवित्र राख अर्थात् भस्म लगानी होती है ; उसे मांस मदिरा से परहेज करना अर्थात् पूर्ण शाकाहारी रहना होता है ; सत्य, अस्तेय चोरी न करना और अहिंसा का सतत आचरण जरूरी है, उसे आलस्यहीन होना चाहिए क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को कोई न कोई धंधा अपनाकर कठोर मेहनत से अपना जीवन बसर करना चाहिए ; उसे मंदिर नहीं जाना चाहिए क्योंकि स्वयं शरीर ही मंदिर है तथा जहां शिवभक्त रहते हैं वहीं तीर्थ है ; यदि किसी के पास पूजा करने का समय और साधन न हो तो चिंता का विषय नहीं क्योंकि ईश्वर में उसकी आस्था महत्वपूर्ण है ।