Meaning of Sin in Hindi - हिंदी में मतलब

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Ayush Rastogi
Mar 07, 2020   •  0 views
  • अपराध

  • पाप

  • पाप करना

  • आचरण करना

  • गुनाह

  • सिन

Synonyms of "Sin"

"Sin" शब्द का वाक्य में प्रयोग

  • So be patient. The promise of God is true. And ask forgiveness for your sin, and proclaim the praise of your Lord evening and morning.
    अतः धैर्य से काम लो । निश्चय ही अल्लाह का वादा सच्चा है और अपने क़सूर की क्षमा चाहो और संध्या समय और प्रातः की घड़ियों में अपने रब की प्रशंसा की तसबीह करो

  • Those who are about to die and leave widows behind should bequeath for their wives the expenses of one year ' s maintenance. The widows must not be expelled from the house for up to one year. It is no sin for the relatives of the deceased to permit the widows to leave the house before the appointed time and do what is reasonable. God is Majestic and Wise.
    उसी तरह ख़ुदा को याद करो और तुम में से जो लोग अपनी बीवियों को छोड़ कर मर जाएँ उन पर अपनी बीबियों के हक़ में साल भर तक के नान व नुफ्के और न निकलने की वसीयत करनी है पस अगर औरतें ख़ुद निकल खड़ी हो तो जायज़ बातों से कुछ अपने हक़ में करे उसका तुम पर कुछ इल्ज़ाम नही है और ख़ुदा हर यै पर ग़ालिब और हिक़मत वाला है

  • And whoso changeth after he hath heard it - the sin thereof is only upon those who change it. Lo! Allah is Hearer, Knower.
    तो जो कोई उसके सुनने के पश्चात उसे बदल डाले तो उसका गुनाह उन्हीं लोगों पर होगा जो इसे बदलेंगे । निस्संदेह अल्लाह सब कुछ सुननेवाला और जाननेवाला है

  • Forsake the outwardness of sin and the inwardness thereof. Lo! those who garner sin will be awarded that which they have earned.
    छोड़ो खुले गुनाह को भी और छिपे को भी । निश्चय ही गुनाह कमानेवालों को उसका बदला दिया जाएगा, जिस कमाई में वे लगे रहे होंगे

  • If a woman is afraid of her husband ' s ill treatment and desertion, it will be no sin for both of them to reach a reconciliation. Reconciliation is good even though men ' s souls are swayed by greed. If you act righteously and be pious, God is Well Aware of what you do.
    यदि किसी स्त्री को अपने पति की और से दुर्व्यवहार या बेरुख़ी का भय हो, तो इसमें उनके लिए कोई दोष नहीं कि वे दोनों आपस में मेल - मिलाप की कोई राह निकाल ले । और मेल - मिलाव अच्छी चीज़ है । और मन तो लोभ एवं कृपणता के लिए उद्यत रहता है । परन्तु यदि तुम अच्छा व्यवहार करो और भय रखो, तो अल्लाह को निश्चय ही जो कुछ तुम करोगे उसकी खबर रहेगी

  • Mauryaputra had doubts about Heaven, Akampita about Hell, Achalabhrata about merit and sin, Metarya about the other world and Prabhasa about Nirvana.
    मौर्यपुत्र को स्वर्ग, अकंपित को नरक, अचलभ्राता को पुण्य - पाप, मेतार्य को परलोक और प्रभास को निर्वाण के विषय में संशय था ।

  • God does not forgive association with Him, but He forgives anything less than that to whomever He wills. Whoever associates anything with God has devised a monstrous sin.
    अल्लाह इसके क्षमा नहीं करेगा कि उसका साझी ठहराया जाए । किन्तु उससे नीचे दर्जे के अपराध को जिसके लिए चाहेगा, क्षमा कर देगा और जिस किसी ने अल्लाह का साझी ठहराया, तो उसने एक बड़ा झूठ घड़ लिया

  • Then after them sent We Moses and Aaron to Pharaoh and his chiefs with Our Signs. But they were arrogant: they were a people in sin.
    फिर उनके बाद हमने मूसा और हारून को अपनी आयतों के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों के पास भेजा । किन्तु उन्होंने घमंड किया, वे थे ही अपराधी लोग

  • Believers, if you take a loan for a known period of time, have a just scribe write it down for you. The scribe should not refuse to do this as God has taught him. The debtor should dictate without any omission and have fear of God, his Lord. If the debtor is a fool, a minor, or one who is unable to dictate, his guardian should act with justice as his representative. Let two men or one man and two women whom you choose, bear witness to the contract so that if one of them makes a mistake the other could correct him. The witness must not refuse to testify when their testimony is needed. Do not disdain writing down a small or a large contract with all the details. A written record of the contract is more just in the sight of God, more helpful for the witness, and a more scrupulous way to avoid doubt. However, if everything in the contract is exchanged at the same time, there is no sin in not writing it down. Let some people bear witness to your trade contracts but the scribe or witness must not be harmed ; it is a sin to harm them. Have fear of God. God teaches you. He has knowledge of all things.
    ऐ ईमानदारों जब एक मियादे मुक़र्ररा तक के लिए आपस में क़र्ज क़ा लेन देन करो तो उसे लिखा पढ़ी कर लिया करो और लिखने वाले को चाहिये कि तुम्हारे दरमियान तुम्हारे क़ौल व क़रार को, इन्साफ़ से ठीक ठीक लिखे और लिखने वाले को लिखने से इन्कार न करना चाहिये जिस तरह ख़ुदा ने उसे सिखाया है उसी तरह उसको भी वे उज़्र लिख देना चाहिये और जिसके ज़िम्मे क़र्ज़ आयद होता है उसी को चाहिए कि की इबारत बताता जाये और ख़ुदा से डरे जो उसका सच्चा पालने वाला है डरता रहे और और क़र्ज़ देने वाले के हुक़ूक़ में कुछ कमी न करे अगर क़र्ज़ लेने वाला कम अक्ल या माज़ूर या ख़ुद का मतलब लिखवा न सकता हो तो उसका सरपरस्त ठीक ठीक इन्साफ़ से लिखवा दे और अपने लोगों में से जिन लोगों को तुम गवाही लेने के लिये पसन्द करो दो मर्दों की गवाही कर लिया करो फिर अगर दो मर्द न हो तो एक मर्द और दो औरतें उन दोनों में से अगर एक भूल जाएगी तो एक दूसरी को याद दिला देगी, और जब गवाह हुक्काम के सामने बुलाया जाएं तो हाज़िर होने से इन्कार न करे और क़र्ज़ का मामला ख्वाह छोटा हो या उसकी मियाद मुअय्युन तक की लिखवाने में काहिली न करो, ख़ुदा के नज़दीक ये लिखा पढ़ी बहुत ही मुन्सिफ़ाना कारवाई है और गवाही के लिए भी बहुत मज़बूती है और बहुत क़रीन है कि तुम आईन्दा किसी तरह के शक व शुबहा में न पड़ो मगर जब नक़द सौदा हो जो तुम लोग आपस में उलट फेर किया करते हो तो उसकी के न लिखने में तुम पर कुछ इल्ज़ाम नहीं है और जब उसी तरह की ख़रीद हो तो गवाह कर लिया करो और क़ातिब और गवाह को ज़रर न पहुँचाया जाए और अगर तुम ऐसा कर बैठे तो ये ज़रूर तुम्हारी शरारत है और ख़ुदा से डरो ख़ुदा तुमको मामले की सफ़ाई सिखाता है और वह हर चीज़ को ख़ूब जानता है

  • But, in these three novels the issue of sin and virtue, destiny and feudal debauchery loom large in his consciousness and this awareness is in one way or the other evident even in his subsequent novels.
    पर इन तीनों उपन्यासों में पाप और पुण्य की समस्या, नियतिवाद और सामन्ती विलासिता के चित्रों के प्रति वर्माजी का एक ऐसा आग्रह दिखायी देता है, जो किसी - न - किसी रूप में उनके परवर्ती उपन्यसों तक में प्रकट होता रहा है ।

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