रचनात्मकता
सर्जनात्मकता
Uncreativeness
The mundane ideal regards man always as a mental, vital and physical being and it aims at a human perfection well within these limits, a perfection of mind, life and body, an expansion and refinement of the intellect and knowledge, of the will and power, of ethical character, aim and conduct, of aesthetic sensibility and creativeness, of emotional balanced poise and enjoyment, of vital and physical soundness, regulated action and just efficiency.
लौकिक आदर्श मनुष्य को सदा की एक मानसिक, प्राणिक एवं भौतिक सत्ता मानता है और उसका लक्ष्य बस इस सीमाओं के भीतर मानवीय पूर्णता प्राप्त करना ही होता है ; इस पूर्णता का अभिप्राय है मन, 626 योग - समन्वय प्राण और शरीर की पूर्णता, बुद्धि एवं ज्ञान तथा संकल्प एवं शक्ति का विस्तार और परिष्कार, नैतिक चरित्र, लक्ष्य और आचार - व्यवहार का, सौंन्दर्य - विषयक सम्वेदनशीलता और सर्जन - शक्ति का, भावों की सन्तुलित स्थिति एवं उनके उपभोग का, प्राण और शरीर की निर्दोष अवस्था का, नियमबद्ध किया और यथायथ कुशलता का विकास और परिष्कार ।