घर छोड़ना आसान नहीं था लेक़िन एक ख्वाब था,
वर्दी पहन के किसी काफिलों में जालान एक चिराग़ था
कसम खा के निकला था, क्युकि अपने सरहद को बचाना था,
आज 14 फरवरी के महत्व को अपने देश प्रेम से नाज़ दिलाना था!!
एक माँ जो आंसू बहा रही हैँ, दूसरी जो अपने गोद में वापस बुला रही हैँ,
एक सिंदूर जो अपने माथे को बार बार सजा रही हैं, और ये खून हैं, जो मेरे आँसुओ को सिर्फ बहा रही हैं
ये जलते हुए शरीर सिर्फ गलती जा रही हैं, शायद अलविदा कहने की एक आखरी ख़वीश निभा रही हैं!!!!
घर छोड़ना आसान नहीं था, लेक़िन कुछ कर गुज़रने का ख्वाब था !
बेटी आज मेरे बेज़ुबान शरीर को सलामी दे रही हैं , बदले में सिर्फ एक ख्वाहिश मांग रही हैं
कहती हैं मेरे पापा पूरा शरीर दे दो....
एक इंच लंबाई कम होने पे तो उस फ़ौज ने भी दाखिला नहीं दिया था
मानो हम कैसे लेले इस आधे बेज़ुबान शरीर को
शायद उस पल को मैं थाम लेता
इन सियासी चोचलो से शायद दोनों सीमा की वर्दी को बचा लेता
घर छोड़ना आसान नहीं था बल्कि कुछ कर गुज़रने का ख्वाब था !
चल रे फ़ौजी चल अलविदा लेते हैं जाते जाते एक आखिरी सलामी को अपने देश के नाम करते हैं
चल आज इस प्यार के दिन को अपने खून से रंगीन करते हैं
चल फिर पूछ ही लेते हैं
How's the josh!!!!
जय हिन्द !!!!