कि तू बस हमारा है,ये गुमाँ हमारा था
हँस रहे थे उन दिनों,जब तू हमको प्यारा था
मैं बहुत कुछ हूँ तेरा पर सबकुछ नहीं,तूने कहा था
अच्छा तो था पर ऐसा रिश्ता हमें भी गंवारा था।
बात करने का लहज़ा ही बदल गया था उनका
बिछड़ने से पहले का वो भी एक इशारा था।
कब तक लड़ पाता तुझसे,तुझे पाने के लिए
साहिल थी तू, मैं तो बस एक किनारा था।
बहुतों ने दिखायी थी चाहत तेरे जाने के बाद
पर कैसे देता उन्हें जिसपर हक़ सिर्फ तुम्हारा था।
शुभम पाठक