मैं कह कह कर थक गया,पर वो समझ न पायी
शायद गणित का कोई कठिन सवाल था मैं
उसने जबसे नजरअंदाज किया,मैंने भी बात न कि
इस मतलबी जमाने में बड़ा खुद्दार था मैं।
कबाड़ के भाव बेचे थे उसने जज़्बात मेरे
उसकी नजरों में इतना बेकार था मैं
हफ़्तों में कभी मुश्किल से याद करती थी,
वो छुट्टी के दिन वाला इतवार था मैं।
शुभम पाठक