आगाज़ ए ज़िन्दगी का मौका ना आएगा बार बार
झूमले, हस्ले जीले खुल के इस पल को एक बार।
यह ज़िन्दगी गुलज़ार है
मानो जैसे बारिश की बोच्छार है
रेत सी फिसलती है
दरिया की तरह बहना ही इसका किरदार है।
यह ज़िन्दगी गुलज़ार है।
वक्त के साथ बदलती है
कभी ढलती तो कभी बिखरती है
कभी खामोशी का समंदर है
तो लब्जों की यह है लहर।
दो रंगों की यह ज़िन्दगी, खूसूरत है जैसे मेहर।
छोटी सी यह ज़िन्दगी
मिलेगी न बार बार
हर लम्हे को ऐसे जियो
जैसे हो मौसम-ए-बाहर ।