हिंदू धर्म में कुंभ मेले का खास महत्व है। इस मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है। माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदि काल से ही हो गई थी। यह कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है।
कहते हैं कि महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए तब राक्षसों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया था। सब देवता मिलकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उन्हें सारा वृत्तांत सुनाया। तब विष्णु भगवान ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर क्षीर सागर में मंथन करके अमृत प्राप्त करने की सलाह दी। देवताओं ने राक्षसों के साथ संधि करके समुद्र मंथन किया और जब अमृत कलश निकला तो इंद्र का बेटा जयंत अमृत कलश को लेकर आकाश में उड़ गया। उसके बाद दैत्य गुरु शुक्राचार्य के कहने पर राक्षसों ने जयंत का पीछा किया और उसे पकड़ने का प्रयास किया। इस तरह 12 दिन तक देवता और दैत्यों में भयंकर युद्ध चला।
कहते हैं कि इस युद्ध के दौरान अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें कलश से चार स्थानों पर गिरी थी। जिसमें से पहली बूंद प्रयाग में गिरी, दूसरी शिव नगरी हरिद्वार में, तीसरी बूंद उज्जैन में तो चौथी नासिक में गिरी। यही कारण है कुंभ को इन्ही चार स्थानों पर मनाया जाता है। देवताओं के 12 दिन मनुष्य के 12 वर्ष के तुल्य होते हैं। अतः कुंभ भी चार होते हैं। उनमें से चार कुंभ पृथ्वी पर और शेष 8 कुंभ देवलोक में होते हैं, जिन्हें देवगन ही प्राप्त कर सकते हैं।