उम्मीदों के शहर में चल रहे हैं,
चिंताओं की चिता में जल रहे है,
नाकामियों का जिन्हें अंदाजा नहीं,
वो बस हाथ पर हाथ धरे मल रहे है,
जिनको पढ़ना कुछ भी नहीं आता,
वो भी अख़बार के पन्ने बदल रहे है,
जज भी निर्णय करने से कतराते है,
तारीखों पर यहां मुकदमें टल रहे है,
गांवों में पानी की इतनी किल्लत है,
मगर सूखे खड़े है नल नहीं चल रहे है,
हमें मोहब्बत नहीं हुई कभी किसी से,
फिर भी तज़ुर्बे के साथ हम कह ग़ज़ल रहे है,
जिसने मानी हार नहीं अपने जीवन में,
वो फिर मेहनत के दम पर सफल रहे है,
~©®शिवांकित तिवारी "शिवा"
©shivankittiwariofficial