एक तुम ही तो हो जिस्से मे
तक़ाज़ा रखतीं हूँ ।
एक तुम ही तो हो जिस्से मे
अपने दिल का हाल बया करती हूँ ।
मेरी बेचैं सी बाते सुनकर
तेरी बेताबी हवाओं का
रुख मोड़ देती है ।
मेरे तन्हा सफ़र के
एक लौते गवाह हो तुम।
कभी अनकहीं कहानियान भी
आँखों से पढ़ लेते हो।
तो कभी आँखों की नमी को
बेमौसम बारिश बना देते हो ।
माना चांद हो तुम और जमीन हूँ में ।
तुम्हारे बिना कमी (अधुरी) हूँ में।
चलना साथ है पर मिलना नहीं।
इस बात की हमी हूँ मे।
बस तुम ही तुम हो......
और मे ही में ......