रविवार की सुबह रामकृष्ण जी अपने परिवार के साथ त्रिवेणी  धाम निकल पडे। बारिश का सुहाना मौसम था, ठंड़ी-ठंड़ी हवा चल रही थी। गाड़ी में पीछे की सीट पर बैठी उनकी तीन बेटियाॅ पायल, महक, कनिका बारिश की बौछार का मजा ले रही थी। रामकृष्ण जी और उनकी पत्नी रमा किशोर कुमार के गानों का आनंद ले रहे थे। अचानक रामकृष्ण जी ने ब्रेक लगाया और गाड़ी रूक गयी। सभी गाड़ी से बाहर निकले तो देखा एक छोटा सा बछड़ा जख्मी अवस्था में सड़क के बीचों- बीच बेहोश पड़ा था।
रमा जी के ममतामयी हाथों ने जब बछड़े के जख्म को छुआ तो बछड़े ने कुछ हलचल की। कहते हैं भगवान् हर जगह नहीं आ सकते इसीलिए उन्होंने माँ बनायी हैं। गाँव में आस-पास कोई अस्पताल नहीं था। तीनों बेटियों और रामकृष्ण जी ने बछड़े को सड़क किनारे सुरक्षित जगह पर लिया। रमा जी ने बछड़े के सिर को अपनी गोद में रखा और जख्म के आसपास के हिस्से को सहलाते हुए पानी से धोया। खून को बहने से रोकने के लिए रमा जी ने रामकृष्ण जी का पहना हुआ गमछा बांध दिया। पूरा परिवार दोपहर में वही बछड़े के पास बैठे हुए उसे टकटकी लगाये देख रहे थे ।
सूरज ड़ूबने लगा था कि बछड़ा होश में आया और पायल, महक, कनिका के साथ खेलने लगा। पूरे परिवार ने बछड़े के साथ शाम का समय मौज मस्ती से बिताया। रात में जब घर जाने के लिए सब गाड़ी में बैठे तो बछड़ा आकर गाड़ी को चाटने लगा और उसकी आँखों में आँसू थे। तब परिवार ने उसे अपने साथ घर ले जाने का निश्चय किया। अब वह बछड़ा भी रामकृष्ण जी के परिवार का चेहरा सदस्य बन चुका था।

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