जिसका कोई अंत है वो किनारा नही हूँ
महज़ एक शाम बनकर ढल जाए वो भोर नही हूँ
अब कोई कठिनाई कैसी ,जब हौसला बुलन्द हो
दिव्यांग तन से हूँ , मन से में कमजोर नही हूँ।
दिव्यांग वह है जिसमे व्यक्ति के हाथ , पैर आदि का अलग हो जाना या फिर किसी व्यक्ति के किसी अंग का सही से काम न करना। दिव्यांग जिसे विकलांग भी कहा जाता है। दिव्यांग व्यक्ति को दुनियां एक दया की नज़र से देखती है ।
दिव्यांग एक ऐसी परिस्थिति है जिसे आप चाहकर भी पीछा नही छुड़ा सकते है जरा सोचिए एक आम आदमी को छोटी सी छोटी बातों पर या फिर छोटी सी चोट पर झुंझुला उठता है तो सोचिये उन बदकिस्मत लोगो का क्या जिनका खुद का शरीर उनका साथ छोर देता है ,फिर भी जीना कैसे है कोई इनसे सीखे,आज दुनिया में कई लोग ऐसे भी है जिन्होने दिव्यांग जैसी कमजोरी को अपनी ताकत बनाया है।
दिव्यांगों को बहुत सी परिस्थितियों का सामना करना पढ़ता है जैसे कि आज के युग में दिव्यांग होने के कारण की वजह से लोगो को समाज के सामने अपनाने में शर्म महससू होती है तथा दिव्यांग होने के कारण उनको बन्दी बनाकर बीच सड़क पर भीख मंगवाना ,इस तरह का शोषण का सामना भी करना पड़ता है। लेकिन दिव्यांग लोगो से मुह नही चुरा सकते है क्योंकि आज भी कहि न कही हम जैसे आम लोग इनकी कमजोरी का मज़ाक उड़ा कर उन्हें और कमजोर बना देते है ,उन्हें दया से देखने के बजाए उनकी मदद करनी चाहिए, आखिर उन्हें भी जीने का पुरा अधिकार है और यह तभी मुमकिन है जब आम आदमी इन्हें आम बनने दे।
दिव्यांगों के प्रति सामाजिक सोच को बदलने और उनके जीवन के तौर तरीके को और बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए। दिव्यांगों के लिए आवश्यक सार्वजनीक सुविधाएं कुछ जगहों पर उपलब्ध होनी चाहिए जैसे कि -रेलवेस्टेशन,
हॉस्पिटल, शिक्षासंस्थान, बसस्टैंड,आदि जगहों पर उनके लिए पीने का पानी की सुविधाएं होनी चाहिए।
आज हमारे समाज में कुछ ऐसे व्यक्ति है जो दिव्यांग होने के बावजूद अपनी मेहनत और अपने हुनर से देश भर का दिल जीत लिया है जैसे कि भरतनाट्यम नृत्य की जानी मानी हस्ती सुधा चंद्र, बैडमिंटन के खिलाड़ी गिरीश शर्मा, महिला क्रिकेट टीम की प्रीति श्रीनिवासन , लोक गीत के रविन्द्र जैन आदि अपनी दिव्यांग होने के बावजूद इस कमजोरी को अपनी ताकत बनाया है ।ये वो लोग है जो दिव्यांग होने के बावजूद दुनियां के लिए एक बहुत बड़ी मशाल है।