#ईर्ष्या #जलन #दोष #चाल

✍✍✍(ईर्ष्या)

आखिरकार उस विषय पे लिखने का आज मुझे अवसर मिल ही गया जो अब तक सोया था.... मेरे जज्बाती ख्यालों में! एक उलझन बन कर।

बेहद ही दर्दनाक पहलू है जो मानवता के सार को ही शर्मसार कर रखा है।खुद के लिये फिक्र कम होती है क्योंकि संघर्षों में खुद को इतना रूला आया किछोटी मोटी बचकाना हरकत अब भला क्या डिगायेगा। पर सोचता हूँ उनके बारे में जो अभी चलना शुरू ही किये हैं और उनकेखिलाफ लोग छल बल का इस्तेमाल कर उनके प्रतिभा का सत्यानाश कर देते हैं,सारे उतने भी साहसी नहीं होते की समाजिक कुरीतियों से खुद के ही दम पे उबर पायें, तो सारे विषयवस्तु में खुद को रखकर चाहता हूं कि ऐसा न हो। लगता होगा की मैं कुसूरवार हर गलती के लिये,पर मेरा गलत दिखना भी जरूरी तभी समाजिक बेरुखी ज्यादा नजर आती है और मेरे भाव के साथ कलम दौड़ती है

आईये नजर डालिए मेरे सुलगते विचारों से निकलने वाली शब्दों पे। सत्यताकी मुहर लगाना न मेरा काम, न आपका। यह रजामंदी ईश्वर का जरूरी, हमारा आपका बस प्रयास हो पूरी

अक्सर देखा हूँ....लोगों को, खुद को ईर्ष्या में खुद के जेहन को जलाते, खुद को एक ऐसे इंसान के रूप में परिलक्षित करते जिसका अस्त्तिव विलीन होने केकगार पे है। यह नजर का दोष है या फिर संस्कारों का...यह भी टटोलना बेहद जरूरी होगा। यह तन जलन का दोष या फिर जेहन चुभन का...यह भी चिंतनीय पहलू। अक्सर पाया यह जाता है कि अगर हमारे इरादों में कोढ़ लग जाये,हमारे जेहन में वैर द्वेष रूपी कीड़े पड़ जाएं तो लाजिमी है बदबू तो फैलेगी ही जो सिर्फ दूसरों को ही नहीं, खुद को भी बेहद प्रभावित करेगी, जो मन मष्तिष्क को मैला और प्रयासों में...आत्म साहस की कमी का सूत्रधार होता है।

ऐसे विचार आते कहाँ से हैं!....

कोई कहता है कि यह संस्कारों का दोष होता है जिसका बीजारोपण माँ बाप के जिन के द्वारा होता है। मेरा ऐसा बिलकुल नहीं मानना, मैं खुद के गुनाहों के लिये पाक खून को कभी दागदार नहीं बोल सकता...संस्कार एक माहौल है, जिसका गुजर बसर हमारी चेतना में होता है, ना कि किसी महफ़िल में। मुक्कमल हर नेक ख्यालात जेहन में होता है न कि बोल में।

अच्छे संसर्ग जरूरी है पर इसकी क्या निश्चितता की अच्छे संसर्ग आपमें अमूल चूल परिवर्तन ला ही दें जब तक गर आपकी मनोदशा ठीक नहीं। चेतना वो पौध है जो मां बाप के द्वारा नहीं, बल्कि मर्म और कुंठा की उपज है जो संघर्षों और दर्दो के जरिये हम तक पहुंचता है।

"तथ्यों के आधार पर गुनाह तय होते हैं, विचार नहीं"

अनैतिक विचारों के लिये जिम्मेवार समाज है, सामाजिक कुरीतियाँ और असमानता रूपी जहर है। हम गैरों को सफल देख बेहद कुंठित होकर जिने लगते हैं, हमारी इंद्रियों की शक्तियां का अपक्षय होने लगता है, क्योंकिचित में चोर घुस जाता है, कुछ न पाने का, समाजिक संरक्षण न मिलने का, दौड़ने की शक्ति कम जाती है और पूरी दुनिया ही हमें चोर माफिक प्रतीत होती है, जो चिंतनीय पहलू है ...आज के युवा तीव्र गति से लोकप्रियता के शिखर को छूना चाहते, वो खुद के हौसले में समावेशित कीड़े को दूसरों को देना चाहते। वो यह चाहते की जो खुशियां हमें न मिल सका, उसमें कोई और खुश कैसे रह सकता है।

सफलता मेरी नजर में कुछ है ही नहीं, बस एक छलावा, सफर का मतलब निरंतर चलते रहना है, जो हमें एक सफल इंसान की श्रेणी में ला खड़ा करता है। विशेष लक्ष्य आपको सीमित करता है पर असीमित सीखने कीभूख आपको आपके जीवन में निरंतर जीवित रखता है

हम किसी का तब तक विनाश नहीं कर सकते, जब तक इसके लिये वो खुद तैयार नहीं हो जाता। इंसान खुद के विनाश का स्वयं कारक होता है न की कोई और उसके लिये कुसूरवार है।

मुझमे भी ईर्ष्या है खूब है पर मैं किसी को मिटाना नहीं बल्कि अनंत प्रयासों के जरिये खुद को जीताना चाहता हूं। मुझे पीछे रहना या किसी को छल के जरिये पीछे करना बिलकुल भी पसंद नहीं। पर हारना भी शायद मेरे जीवन या किसी खेल का हिस्सा नहीं,आईये हम मुकाबला करें, आईये जो कुबूल हो तो आप आगे निकलें, मुझे पीछे करें।मुझे गर अच्छा न लगे, तोमैं आपसे आगे निकलूं, आपको पीछे करूँ... इसमें आखिरकार जीत किसी एक इंसान की ही होगी,न की शैतान की जो छल बल से किसी को हराना चाहते और अपने लिये एक नरकीय संतुष्टि का आनंद लेना चाहते। क्यों नहीं वैर, द्वेष, घृणा और ईर्ष्या का त्याग कर हम सब प्रतिस्पर्धा करें,तब समाज की रौनक और देश की रौनक कुछ और होगी। बस प्रयास ऐसा करें जो पुण्य माफिक आपके और हर जेहन मन भावे।

आशा करता हूँ यह आलेख आपको पसंद आई हो।आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा में...😍🙏

आपका भवदीय,

✍✍✍राजू रंजन

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