#शिक्षा #education #जनसंख्या #daughter
आधुनिक शिक्षा प्रणाली!
👉👉👉👇
आधुनिक सरकारी शिक्षा व्यवस्था से जो सबसे पहला सवाल मेरे ज़हन में घर कर गया वो यह कि इस व्यवस्था के अधीन रहकर क्या हम उन्नत और एक आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की रूपरेखा तैयार कर सकते हैं!?...
मैं इस लेखनी को अपना अर्थ देने की कोशिश नहीकरूँगा...आज इस लेखनी को एक खुली संवाद के रूप में पेश करूँगा ताकि समाज के जो बुद्धिजीवी तबका है, वो भी रंज न हो और उन्हें भी इसमें अपनी प्रतिक्रिया साझा करने में मजा आये
परिवेश कितना बदल गया...भारत की भूमि तो उपजाऊ है ही पर जनसंख्या अपने चरम उफान पे आ गया,उसका कुसूरवार हम किसी को नहीं दे सकते क्योंकि यह इंसानों का मौलिक अधिकार है कि वो कितने बच्चे रखें जब तक इस दिशा में कोई कानून नहीं निर्गत हो जाता पर हाँ!... अपनी आर्थिक हालात को देखते हुए इंसान को यह फैसला लेना होगा कि वो कितने बच्चे रखें जिससे वो तंगी के कगार पे न जाएं, यह उन्हें सोचना होगा कि वो कितने बच्चे को कुपोषण से परे एक बेहतर बचपन दे सकते हैं, वो कितने बच्चों को अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उन तक पहुंचा सकते हैं...
पर यह बातें जो मैं लिख रहा हूँ शायद उन तक पहुंच भी नहीं सकती क्योंकि वो अशिक्षित हैं, वो अनभिज्ञ हैं शब्दों के बिनावट से। फिर भी मेरा सवाल है कि क्या जनसंख्या ही सिर्फ जड़ है जो शिक्षा को प्रभावित कर रखा है या फिर जनसंख्या नेताओं के लिये महज मात्र अपनी गलती छुपाने का एक जरिया मात्र है!?...
खैर...मैंने भी जनसंख्या के योगदान में अच्छा योगदान दिया और उस बात का मुझे कोई मलाल नहीं। मैं यह नहीं कह रहा कि मैं जनसंख्या वृद्धि के पक्ष में नारा लगा रहा हूँ पर यह भी नहीं कह सकता कि जनसंख्या पे रोकथाम के लिये कोई हिटलर शाही सा फरमान सुनाए....सामाजिक घटिया सोच ऐसा कि एक कंडोम लेने में भी लोगों को शर्म आती है कि कोई कुछ और न समझ ले, क्योंकि हम शिक्षित नहीं, चेतना जागृत नहीं
सारी समस्याओं के पीछे जो वजह हैं वो है मूलभूत आधार शिक्षा से लोगों का वंचित रहना, जो इंसानों को दूरगामी समस्यायों से अवगत नहीं कराता और तभी उनमें बौद्धिक विकास जन्म नहीं लेता, जो उनके चेतना को प्रबल कर ,उन्हें उचित फैसला लेने में मदद करे
लोग आखिर अशिक्षित क्यों रहते हैं....कौन रखता है अशिक्षित उन्हें....यह भी बेहद अहम सवाल...
शायद यह वोट बैंक की राजनीति कहें या फिर चंद बुद्धिजीवियों की अपनी विसात जो चाहते ही नहीं कि मुल्क में एकसमान शिक्षा की व्यवस्था आये कभी, ऊंच नीच के भाव तो बचपन से ही डाल दिये जाते हैं तो हम आने वाली पीढ़ी से फिर समता रूपी भाव की क्यों उम्मीद पालें.... किसी का बच्चाशाही विद्यालय की ओर रुख करता है तो किसी का बच्चा सिर्फ खिचड़ी खाने के लिये सरकारी विद्यालय का चक्कर लगाता है, यही आगे चलकर उन्हें समाज के मुख्य धारा से जुदा कर उनसे असामाजिक कृत्य कराता क्योंकि वो द्वेष झेलते झेलते बड़े होते हैं, उनमें अमीरी गरीबी का बोध इस कदर बचपन से ही बो दिए जाते हैं जिससे वो खुद को इस समाज का हिस्सा मान ही नहीं पाते
बेहद शर्म है आता जब टेलीविजन अखबार के माध्यम से यह सुनता की शिक्षक को अच्छे से ABCD लिखने नहीं आता, अब आप बताओ उनसे हम आप क्या उम्मीद पालोगे कि वो शिक्षा को बेहतर ढंग से नौनिहालों के भविष्य संवारने केकाम ला सकें
कहीं कोई गरीब आरक्षण के मार से पीड़ित है तो कहीं कोई बाप के मुफ्तखोरी के द्वारा अर्जित धन से शिक्षा खरीद ले रहा है, मनमाना घुस देकर उन शहजादों का प्रख्यात निजी विद्यालय में दाखिला होता है,वो भी डॉक्टरी कर लेंगे, इंजीनियरिंग कर लेंगे, फिर रसूख और धन के जोर पे,उन्हें कहीं सरकारी संगठन में नौकरी भी मिल जाएगा...किसी कारणवश नहीं भी मिला...तो उनके पूज्यवर पिता उनके लिये निजी संस्था खुलवा देंगे और उस निजी संस्था को अपने धन, जन बल के जोर पे चंद महीनों में चमका ,रोगियों का जनसैलाब बुला लेंगे, अब बताओ उन्हें प्रतिभा की क्या जरूरत आ पड़ी जो वो रात रात भर जगकर, दो सुखी रोटी खाकर पढ़ाई करें
एकतरफ आरक्षण वाले भी मजा ले रहे, वो मजा लेने वाले भी अपने जात में अमीर ही होते हैं, जिन्हें आरक्षण के मजे के बारे में पता है, वो भी आधी प्रतिभा के जोर पे ही डॉक्टर इंजीनियर बन जाते हैं
आज पुल पुलिया के गुणवत्ता में जो कमी आयी है उसमें भी वही घुस का तांडव है, सारे लोग माल कमाने में व्यस्त हैं, ऊपर से नीचे तक ख़ैरात बांटा जाता है, पूरे रकम का अगर आधा हिस्सा भी इस्तेमाल हो गया तो यह खुदा का शुक्र है कि उस दिन ख़ैरात कम बंटा
अगर कोई 50 लाख देकर डॉक्टर बनता है तो शायद उसका पहला काम होगा खर्च किये रुपये को वापस पाना, फिर वही गरीबों का शोषण, वो आधुनिक भगवान का दर्जा लिए बैठते हैं जन सेवा को पर आज वो धन सेवा में ही मस्त हैं, मृत शरीर को भी दो तीन दिन तक कैद रखकर इलाज दिए जाते हैं, ये हैं हमारे शिक्षित तबका हिंदुस्तान का।
मुझे आज भी वो दौर याद है जब 20 dec 2000 को मैं 19 1/2 साल का रहा होऊंगा जब रिशु पैदा हुआ...वो दिन मेरे ज़िन्दगी का सबसे अहम दिन था..मुझमें और किसी मजदूर में कोई फर्क नहीं था।।। बस फर्क था शिक्षा का, चेतना का, संस्कार का...जिसका बीजारोपण नाना बचपन में कर रखे थे..
मेरा और पापा के बीच सकारात्मक और वैचारिक मतभेद रहे तभी मैंने अपना रास्ता अलग कर लिया...मैं अपनी ज़िन्दगी के फैसले तभी से किसी के अधीन न छोड़ा।
आप अनुमान नहीं लगा सकते कि किस किस दौर से गुजरा होगा यह शख्स बीबी बच्चा लिए, उसके पास कोई सहारा नहीं था, वो एक मजदूर था, पर मैंने शिक्षा को कभी नहीं छोड़ा, याद है एक वक्त था जब रिशु भी पढ़ता था और हम भी
मेरे सपने टूटे मुझे वो संरक्षण ना मिला जिसके जोर पे मैं अपने लिये एक मुकाम बना सकता था पर जो भी हालात रहे, मैंने घर बैठे अंग्रेजी बोलना लिखना सीखा, मैंने कंप्यूटर कोर्स भी 19 साल में ही की। याद है जब मैं अपना जेनिथ पेंटियम फ़ॉर का कम्प्यूटर लिये तब मेरी उम्र 22 की होगी और उस वक्त बोधगया में शायद निजी वो किसी के पास दूसरा या तीसरा कम्प्यूटर होगा। तब मुझे खाने के लाले थे पर मैंने अपने काम से पैसे बचा उसे खरीदा...
रिशु को एक छोटे से विद्यालय में दाखिला करा दिया था, उसको कोचिंग 2 घंटे एक शिक्षक के यहां ले जाता फिर ले आता...रिशु की ज़िन्दगी को मैंने एक मशीन बना दिया था....शायद मैंने जो न पाया ज़िन्दगी में मैं उससे करवाना चाहा... तभी मेरी ज़िन्दगी की सुबह रिशु से शुरू और रिशु से खत्म होता था
वो आम बच्चा नहीं था...वो स्कूल के बाद भी आठ घंटे घर पर पढ़ता और उन घंटों में मैं उसके हमेशा साथ होता...मेहनत रंग लाई ..वो Nursery से UKG तक मानव भारती बोधगया में ही पढ़ा और हमेशा अव्वल ही रहा
तभी जब हम बड़े बड़े गिने चुने लोगों के बच्चे को गांव से बड़े स्कूल जाते देखते तो मैं अपनी किस्मत को कोसता की ईश्वर आपने मुझे ऐसा क्यों बनाया कि मैं अपने बेटे को D.A.V में न पढा सकूँ। दरअसल उस दौर में उस विद्यालय में दाखिला होना बेहद मुश्किल था। महज 1STD में 50 सीट और बच्चे होते थे 500
मैंने हिम्मत की क्योंकि मुझे रिशु पे और खुद के दिये परवरिश पे पूरा यकीन था कि रिशु मेरा 50 के अंदर क्या...वो टॉप फाइव में आएगा...वो परीक्षा में शामिल हुआ और परीक्षा से निकलकर वो बोला कि... पापा हो गयी...आप देखना मैं पास कर जाऊंगा...रिशु मेरे लिये पत्नी से भी ज्यादा प्यारा था ...तभी एक साल के उम्र से ही वो मेरे पास रहता नाना नानी के यहाँ भी नहीं जाता था... क्योंकि वो वीणा के बिना रह सकता था पर मेरे बिन नहीं
खैर...रिशु बोला तो मैं निश्चिन्त हो गया कि मेरा बेटा जरूर पास करेगा। सूची निकलने की तिथि जैसे जैसे करीब आता गया मैं विचलित होता गया...सूची निकलने के पहली रात मैं पूरी रात सोया नहीं...सूची देखते ही मेरी आँखें डबडबा आयी...मुझे लगा एक बार फिर मेरे सपने को किसी ने कुचल दिया है
मैं हार मानने वालों में से नहीं था...प्राचार्य से मिलकर मैंने कॉपी दिखलाने की जिद्द की...वो इसे नियम केखिलाफ बताए...फिर भी मैंने तीन महीने तक दाखिला के लिये नहीं, कॉपी दिखलाने की बस जिद्द की ...अंततः उन्होंने कॉपी दिखलाया जिसमें रिशु 100 में 92 अंक अर्जित किया था शायद टॉप 5 में ही...पर उन्होंने वजह बताया को रिशु ओवर एजेड है इसीलिये सूची में नाम नहीं आया। अंततः मैंने उन्हें विनत की ...और वो मान गए
रिशु का दाखिला हुआ...तब से वो वहाँ अव्वल आठ सेक्शन को छठी वर्ग तक टॉप किया...मेरा फ्लैश तब सोनी का कैमरा तैयार रहता प्राचार्य जब मंच से उसे अवार्ड देते,आखिर वो प्राचार्य मेरे अभिभावक बन गए...मैं जब भी मिलता उनका पैर छूता... फिर छोटा बेटा की बारी आई...वो उद्दंड था पर ये क्या...वो पहली वर्ग का एंट्रेंस दिया तब वो 50 बच्चों के लिस्ट में नंबर एक पे जा बैठा था और हम सूची में उसे निचे से ढूंढ रहे थे
रही बात बेटी की तो उसे तीन बार टेस्ट दिलवाया पर वो निकाली नही जबकि वो भी पढ़ने में अच्छी थी पर होनी को यह तब तक मंजूर नहीं था इसीलिये उसे वर्ग पांचवी तक मानव भारती में ही रखना पड़ा
पर यह बात मुझे कचोटती रहती की एक दिन मेरी बेटी मुझसे सवाल करेगी कि आपने मुझे भाईयों सा शिक्षा न दिया....जबकि उसके उस विद्यालय में न पढ़ने के पीछे वजह मैं या मेरा प्रयास नहीं, बल्कि उसका टेस्ट न निकाल पाना था क्योंकि मैंने विशेष आग्रह पे उसे तीन साल टेस्ट में सम्मिलित करवाया....
मैं हर साल विद्यालय जाकर विनती करता पर बात बनी नहीं, कि एक बार और टेस्ट ले लो,क्योंकि वो वर्ग एक तक ही टेस्ट लेते थे तो यह मुश्किल था कि हर साल उनसे मैं विनती करुँ स्पेशल टेस्ट कंडक्ट कर दाखिला देने को
आखिर छठी में फिर से विनती की, प्राचार्य मान गए, वो शामिल हुई, उसने टेस्ट निकाली
उसका दाखिला हुआ...तब जाकर समाजिक घूरती निगाहों से मुझे निजात मिला और फक्र से कह पाया कि बेटी बेटा एक समान तभी बनता कोई बाप महान
रिशु सातवी में गया मेरा भी जॉब मार्केटिंग में हुआ तब से घर पे सिर्फ मैं रात में ही जाता...रिशु की स्टडी भी प्रभावित हो गय, वो अब बेस्ट नहीं बिलकुल साधारण रिजल्ट देने लगा, सातवी से नौंवी तक पता नहीं उसे क्या हो गया कि वो एकदम निम्न स्तर का बालक हो गया.उसके प्रति मेरा रवैया में भी बदलाव आया...मेरे सपने मानो टूटते नजर आए...मैं खुद में सिमटता गया...आखिरी उम्मीद भी मानो मेरा छूटता जा रहा था
तभी उसे मेरे दर्द का एहसास हुआ और वो बस एक बात बोला कि...पापा जी मैं आपको एक दिन जरूर गौरवान्वित करूँगा...वो भी एक साल के अंदर...उसका रिजल्ट आना था...मैं सोचा कि भगवान किसी तरह रिशु को फेल मत करना क्योंकि उसका रिजल्ट मैथ्स साइनस का कुछ ऐसा ही था दो सालों का तो मैं डर गया था..और समाज मे सब को मालूम था कि रिशु बेस्ट है तो मुझे बेहद डर लग रहा था
तभी रिशु मोबाइल पे अपना रिजल्ट देखकर खुशी से उछल पड़ा और बिलकुल मेरी तरह मेरे ही अंदाज में, एक जांबाज के आवाज में बोला कि आप देखो "मैं जीत गया"....वो रो रहा था...पूछा बार बार तो बतलाया दिखलाया की 10 CGPA लाकर वो पास किया है...मैं वीणा दोनों के आँखों में आँसू थे....मानो हम गरीब को एक वजह मिली बरसो किये तप का,होता भी क्यों नहीं...समाज में आजतक किसी ने 10 CGPA से पास जो न किया था।।। हम बेहद रोये उस दिन....विद्यालय और फिर डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट ने उसे सम्मानित किया तब एहसास हुआ कि शिक्षा पैसे कमाने का जरिया तो है पर चेतना और प्रतिस्पर्धा के लिये बेहद जरूरी है ताकि मौत को भी हम हरा सकें
मैंने निज ज़िन्दगी के इस किस्से को इसीलिये साझा नहीं किया ताकि मुझे तारीफ मिले बल्कि इसीलिये किया ताकि कोई भी गरीब खुद को गरीब मानकर रुके नहीं, अपने बच्चों के लिये सपने देखना न छोड़े, मेरा उद्देश्य हम जैसे असहाय निर्बल लोगों केखून खौलाना है ना की मुझे किसी प्रशस्ति पत्र की दरकार है
शिक्षा कोई देगा नहीं, हमें आपको खुद से अपने बच्चों को देना होगा सिर्फ पैसे के जोर पे नहीं बल्कि इरादेके बीज को उनमें बोकर,उन्हें ललकारना होगा अपनी मंजिल को हासिल करने के लिये, खुद को दौड़ता हुआ दिखाकर,उन्हें भी वैसी दौड़ लगाने के लिये प्रेरित करना होगा
आगे का पता नहीं बच्चे क्या करेंगे...उनकी अपनी ज़िन्दगी है, सपने होंगे पर मैंने कोशिश की ताकि समाज में रह रहे गरीब लोगों को एक संदेश जाए कि गरीब भी अपने बच्चे को एक आधारभूत शिक्षा का उपहार दे सकते हैं, एक कर्मठ पिता की तस्वीर उनके ज़हन बैठाकर, उन्हें भी अपने बच्चों के लिये खुद से भी बेहतर पिता होने के लिये प्रेरित कर सकते हैं,डॉक्टर इंजीनियर सभी नहीं बन सकते पर आप हम उन्हें खुद का कभी न हारने वाले इंसान की छवि दिखलाकर, उन्हें भी निडर, जांबाज बना सकते हैं
शायद बच्चे बड़े आदमी न बन पाएं पर वो बेहतर मार्मिक इंसान ताउम्र बने रहेंगे, यह मैं आप सबों को दावे से आज में ही कह सकता हूँ
उम्मीद है ज्यादा बड़ी नहीं हुई। माफ़ी 🙏🙏🙏
✒️राजू रंजन