कल रात बात हुई उससे
उसके बोलने का अंदाज दूसरा था
वो जाना चाह रही दूर मुझसे
उसके बातों का मिजाज दूसरा था।
उसके साथ चलने वाला अब जांबाज दूसरा था
चाहत पर उसके लिबाज़ दूसरा था
कहती है देख के बर्दाश कर पाओगे किसी और को साथ मेरे,
हां कह दिया मैंने उसके ख़ुशी के खातिर, पलटने का उसका लिहाज़ दूसरा था।
शुभम पाठक