वो चीखती रही चिल्लाती रही
जोर जोर से शोर मचाती रही
आज उसे बचाने वाला कोई न था
जो लोगों का जीवन बचाती रही।
वो गिरती रही उठती रही
मदद की आस में चलती रही
आज उसको छिपाने वाला कोई न था
जो दूसरों का दर्द छुपाती रही।
तो तड़पती रही तरसती रही
बिलख बिलख कर सिसकती रही
आज उसे देखने वाला कोई न था
जो दूसरों को रास्ता दिखाती रही ।
वो जलती रही मरती रही
बचने की हिम्मत करती रही
आज उसे उठाने वाला कोई न था
जो दूसरों का बोझ उठाती रही ।
शुभम पाठक