स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। यदि बच्चे तन से स्वस्थ होंगे तो उनका मन भी स्वस्थ प्रफुल्लित होगा। तन के स्वास्थ्य के लिए खेलकूद से अच्छा और कोई व्यायाम नहीं है। भरपूर खेलने वाले बच्चों के शरीर का संतुलित, विकास होता है। उनका शरीर स्वस्थ और गठीला, मांसपेशियों कसी हुई होती हैं। उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होती है।
बच्चा जब खेल के दौरान अन्य बच्चों के संपर्क में आता है एवं अपनी टीम के साथ अन्यत्र जाता है तो वहां सभी बच्चे अन्य बच्चों के संपर्क में आते हैं जिससे वहां की सभ्यता और संस्कृति से भी परिचित होते हैं। अपने हम उम्र के बच्चों के साथ खेलने से बच्चों में संकोच दूर होता है जिससे उनमें निर्भीकता, दूसरों से संतुलित व्यवहार जैसे गुण विकसित होते हैं। खेलों से बच्चों में चारित्रिक गुणों का विकास होता है। उनमें अच्छे संस्कार विकसित होते हैं। अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित रहते हैं तथा लक्ष्य प्राप्ति के लिए जी जान से जुट जाते हैं। श्रेष्ठ माध्यम है पढ़ाई लिखाई का तनाव दूर हो जाता है और ताजगी का एहसास करते हैं।
खेेेलो से उनमे नेतृत्व क्षमता विकसित होती है जो उनके जीवन में बहुत काम आती है। खेल से बच्चों में आत्मविश्वास की भावना जागृत होती है। उनका मनोबल बढता है और हार को भी खेल की भावना से लेते हैं तथा बाद में बेहतर प्रदर्शन कर विजयश्री हासिल करते हैं।
हर बच्चे की किसी ना किसी खेल में रुचि अवश्य होती है। उसमें आगे बढ़ना चाहता है लेकिन उचित अवसर और साधन के बिना उसकी प्रतिभा दबकर रह जाती है। यदि उन्हें खेलकूद के भरपूर अवसर प्रदान किए जाए तो देश में हर खेल के क्षेत्र में अच्छे खिलाड़ी सामने आ सकते हैं।