ये दिन कितने खाली
राते कितनी तन्हा है
बोझिल सासों सी जिंदगी
ख्वाब मेरे कितने बे परवाह है
मंजिलो की चाहत है
अपनो का न साथ है
मुझे मेरे सपनो ने अपनो से काफिर बना दिया
सब भरम टूटेगा
जब मंजिल पर ये काफ़िर पहुचेगा
तब तक दुनिया और अपनो के लिए काफिर ही सही.....
ज़िन्दगी एक सफर
मैं मुसाफिर ही सही
डॉ. अविराग