न्यूटन के गति-नियम : एक संक्षिप्त परिचय

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Debarpita Banerjee
Oct 25, 2019   •  84 views
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किसी भी व्यक्ति या वस्तु के गतिविधियों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने के लिए न्युटन के गति नियमों को जानना अनिवार्य होता है। यह किसी भी भौतिक विज्ञान के छात्र के वैज्ञानिक सफर का पहला कदम होता है। इन नियमों के द्वारा हम किसी भी व्यक्ति या वस्तु के गतिविधी से जुड़ी हुई किसी भी मापदंड का आसानी से आंकलन कर सकते हैं।

इन नियमों के कई प्राकृतिक तात्पर्य भी हैं जिनका ज़िक्र हम आगे करेंगे।

इतिहास :

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गति के नियम वैज्ञानिक दृष्टि से बेहद ऐतिहासिक हैं। महान वैज्ञानिक सर आईसैक न्युटन के द्वारा सन् 1686 मेंं लिखी गई किताब 'फिलोसोफिया नेचरैलिस' मे वर्णित किए गए गति के इन तीन नियमों ने ही पहली बार विश्व को द्रव्यमान से अवगत कराया था। सिर्फ यही नहीं, न्युटन साहब ने पहली बार किसी भी वस्तु पर प्रयोग किए जाने वाले बल को सीधे वस्तु के गतिविधी से जोड़ दिया था। इस तरह उन्होंने गति और बल दोनों का सरलीकरण किया।

प्रथम गति नियम:

नियम का पारंपरिक स्वरूप :

"Corpus omne perseverare in statu suo quiescendi vel movendi uniformiter in directum, nisi quatenus a viribus impressis cogitur statum illum mutare"

हिंदी अनुवाद :

"प्रत्येक पिण्ड तब तक अपनी विरामावस्था में अथवा सरल रेखा में एक समान गति की अवस्था में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने के लिए विवश नहीं करता।"

इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है।

इस नियम ने पहली बार जड़त्व के नियम को परिभाषित किया था। किसी भी वस्तु के अंदर एक प्राकृतिक जड़त्व का स्वभाव होता है जो उसे सामान्य स्थिति में अपने अवस्था को बदलने से रोकता है। इस जड़त्व को हटाने के लिए बाह्य बल का प्रयोग किया जाता है।

प्रथम गति नियम का द्वितीय गति नियम से संबंध :

प्रथम नियम के अनुसार किसी पिंड के अवस्था को परिवर्तित करने के लिए बाह्य बल की आवश्यकता होती है। अर्थात यह अनुमान लगाया जा सकता है कि बाह्य बल का पिंड के गतिविधि को नियंत्रित करने में सीधा योगदान है। द्वितीय गति नियम इसी योगदान को दर्शाता है।

द्वितीय गति नियम :

नियम का पारंपरिक स्वरूप :

"Mutationem motus proportionalem esse vi motrici impressae, et fieri secundum lineam rectam qua vis illa imprimitur."

हिन्दी अनुवाद:

"किसी वस्तु के संवेग मे आया बदलाव उस वस्तु पर आरोपित बल (Force) के समानुपाती होता है तथा समान दिशा में घटित होता है।"

नियम के सामान्य रूप की व्युत्पत्ति :

द्वितीय नियम के पारंपरिक स्वरूप को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि :

F α (Δp/Δt)

⇒ F α dp/dt

⇒F = m (dv/dt)

⇒ F = ma

उपर दिया गया सरलीकरण द्वितीय गति नियम का सामान्य रूप है जिसमें F बल, m द्रव्यमान, तथा a गति के तरन को दर्शाता है।

इस सरलीकरण में द्रव्यमान का प्रथम बार प्रयोग किया गया था। इस सरलीकरण में द्रव्यमान को एक प्रोपोर्शनैलिटी कांस्टेंट के रूप में दर्शाया गया है।

इस सरलीकरण में गति के तरन को प्रयोग किए गए बल के सीधे प्रभाव के रूप में दर्शाया गया है।अर्थात किसी भी प्रयोग किए गए बल को पिंड के तरन के परिवर्तन के रूप में आँँकलित किया जा सकता है।

यह गति नियम सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला गति नियम है, जिसके अनेक भौतिक तात्पर्य हैं।

द्वितीय गति नियम के भौतिक तात्पर्य :

  1. द्वितीय गति नियम को मेकैनिक्स का मूलभूत सिद्धांत माना गया है।

  2. इस गति नियम को पुली, स्प्रिंग तथा लिफ्ट आदि मशीनों के काम के आँकलन के लिए पारंपरिक तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

  1. इस गति नियम का शियुडो फोर्स के अंकन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है।

तृतीय गति नियम :

नियम का पारंपरिक स्वरूप:

To every action, there exists an equal and opposite reaction.

हिंदी में अनुवाद:

प्रत्येक क्रिया का सदैव विपरीत दिशा में सामान प्रतिक्रिया होता है।

तृतीय गति नियम के कुछ भौतिक तथा प्राकृतिक तात्पर्य

  1. रॉकेट साइंस में न्यूटन के तृतीय गति नियम का प्रयोग होता है। रॉकेट उतने ही बल से ऊपर उठता है जितना बल उसका इंजन का धूंआ ज़मीन पर लगाता है।

  2. जब कोई व्यक्ति नाँव से उतरता है तो उसके द्वारा प्रयोग किए गए बल से नाँव पीछे हट जाता है।

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  3. नाविक के द्वारा प्रयोग किए गए बल से नाव आगे चलता है।

  4. जब कोई मनुष्य अपने पैरों से ज़मीन पर बल देता है तो ज़मीन भी उस मनुष्य पर सामान बल का प्रयोग करता है। उसी बल के सहारे मनुष्य चल पाता है।

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