शरीरधारी
The ordinary man tries to command it mechanically by physical exercises and other corporeal means, the Hathayogin more greatly and flexibly, but still mechanically by Asana and Pranayama ; but for our purpose it can be commanded by more subtle, essential and pliable means ; first, by a will in the mind widely opening itself to and potently calling in the universal pranic shakti on which we draw and fixing its stronger presence and more powerful working in the body ; secondly, by the will in the mind opening itself rather to the spirit and its power and calling in a higher pranic energy from above, a supramental pranic force ; thirdly, the last step, by the highest supramental will of the spirit entering and taking up directly the task of the perfection of the body.
साधारण मनुष्य इसे यान्त्रिक रूप में शारीरिक व्यायामों तथा अन्य भौतिक साधनों के द्वारा अपने अधिकार में रखने का यत्न करता है, हठयोगी अपेक्षाकृत अधिक महान् और नमनीय किन्तु फिर भी यान्त्रिक ढंग से, आसन और प्राणायाम के द्वारा इसपर शासन करने का प्रयास करता है ; परन्तु हमारे उद्देश्य के लिये इसे अधिक सूक्षम, सारभूत और सुनम्य साधनों के द्वारा अधिकार में लाया जा सकता है ; सर्वप्रथम मन के एक ऐसे संकल्प के द्वारा जो उस विराट् प्राणशक्ति की ओर, जिससे कि हम शक्ति आहरण करते हैं, अपने - आपको विशालपूर्वक खोल दे तथा अपने अन्दर बलशाही रूप से उसका आवाहन करे तथा उसकी बलवत्तर उपस्थिति एवं अधिक प्रबल क्रिया को शरीर के अन्दर स्थिर करे ; दूसरे, मन के एक ऐसे संकल्प के द्वारा जो विराट् प्राण नहीं वरंच आत्मा और उसकी शक्ति की ओर अपने - आपको खोले और ऊपर से एक उच्चतर प्राणिक शक्ति का, अतिमानसिक प्राण - शक्ति का अपने अन्दर आवाहन करे ; तीसरे, अन्तिम पग के रूप में, आत्मा के उच्चतम अतिमानसिक संकल्प के द्वारा जो कार्य क्षेत्र में उतरकर शरीर की पूर्णत्ज्ञ का काम सीधे अपने हाथ में ले ले ।
It is because we use, normally, only our corporeal senses and live almost wholly in the body and the physical vitality and the physical mind, and it is not directly through these that the life - world enters into relations with us.
प्राणलोक को न जानने का कारण यह है कि साधारणतः हम अपनी भौतिक इन्द्रियों का ही प्रयोग करते हैं और प्रायः पूर्ण रूप से शरीर, स्थूल प्राण और स्थूल मन में निवास करते हैं, पर प्राणलोक सीधे इन करणों के द्वारा ही हमारे सम्पर्क में नहीं आता ।
' Love here, transcends its corporeal and earthly limitations and assumes a sacred spiritual significance.
' यहाँ प्रेम अपनी शारीरिक तथा पार्थिव सीमाएँ तोड़कर एक आध्यात्मिक पावन अर्थ ग्रहण कर लेता है ।
In starfish the digestion is extra corporeal digestion.
स्टारफिश में पाचन देहबाह्य पाचन होता है ।
All working of mind or spirit has its vibration in the physical consciousness, records itself there in a kind of subordinate corporeal notation and communicates itself to the material world partly at least through the physical machine.
मन या आत्मा की समस्त क्रिया भौतिक चेतना में अपना कम्पन पैदा करती है, एक प्रकार के गौण देहगत संकेत के रूप में वहां अपने - आपको अंकित करती है और भौतिक यन्त्र के द्वारा जड़जगत् के समक्ष अपने - आपको कम - से - कम कुछ अंश में प्रकाशित करती है ।
The corporeal circulation of blood was sufficient.
कायिक रक्त वितरण पर्याप्त था ।
At present we are conscious only of the power as formulated in our physical mind, nervous being and corporeal case sustaining our various activities.
इस समय हम शक्ति के केवल उसी रूप से सचेतन हैं जो हमारे अनेक - विध कार्यों को धारण करनेवाले हमारे स्थूल मन, स्नायविक सत्ता और भौति शरीर में गठित हुआ है ।
Eliminate the falsity of the life which figures as mere vital craving and the mechanical 292 The Yoga of Integral Knowledge round of our corporeal existence ; our true life in the power of the Godhead and the joy of the Infinite will appear.
जो प्राण निरी प्राणिक लालसा का तथा हमारे दैहिक जीवन के यान्त्रिक चक्र का रूप धारण किये हुए है उसके मिथ्यात्व को त्याग दो ; और तब परमेश्वर की शक्ति में और अनन्त के हर्ष में अवस्थित हमारा सच्चा प्राण प्रकट हो उठेगा ।
Mahimbhatta has said that pleasurable emotiom produced by the description of the corporeal expression of different sentiments Vibhavannubhava is ' poetry ' Kavya and when ' it ' is enacted through the actors, it becomes ' drama ' natya.
माहिम भट्ट ने अपने ' व्यक्तिविवेक ' में कहा है विभाव अनुभाव आदि के वर्णन से जो आनन्द का निर्माण होता है, वह ' काव्य ' कहलाता है तथा नटों द्वारा जब उसका अभिनय किया जाता है तो वह ' नाट्य ' हो जाता है ।
We have first a body supported by the physical life - force, the physical prana which courses through the whole nervous system and gives its stamp to our corporeal action, so that all is of the character of the action of a living and not an inert mechanical body.
सबसे पहले है हमारा शरीर जिसे भौतिक प्राणशक्ति अर्थात् स्थूल प्राण धारण किये है; यह प्राण समपूर्ण स्नायुमण्डल में गति करता है और हमारे शरीर के कार्य पर अपनी छाप लगा देता हैं परिणामस्वरूप, इसके सभी कार्य किसी जड़ - यान्त्रिक शरीर की नहीं, बल्कि एक सजीव की क्रिया का स्वभाव धारण किये रहते हैं ।