तुम्हें अमर करने को लिखता हूँ, बदनामी मत समझना।
इस प्यार को कोई साजिश मत समझना।।
अलग बात है कि वक्त के पन्नों में रिश्ता दफन हो गया है अपनाा,
तुम जो किसी और की हो तो इस नाचीज़ को बेगानी मत समझना।
वो दौर बित गया जब तुम्हारी राह देखा करते थे
बिखरा नहीं हूं मगर अब रुमानी मत समझना।।
जो नफरत होती तो एक लफ्ज़ ना देना तुम्हें,
हां सख्ती मुझमे भी है मगर गुमानी मत समझना।।
भावनाओं का कोलााह मुझमे बहुत है,
मगर सैलाब को महज़ पानी मत समझना।।
तुम्हे फर्श से उठाकर फलक तक पहुंचाा दिया
मगर अब खुद को इस दिल की राानी मत समझना।।
कुछ जाम लगाता हूं तो लिख पााता हूं,
इस शायर की तन्हाई को शादमानी मत समझना।।