आधुनिक शिक्षा एक सामाजिक कोढ़!

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राजू रंजन
Jul 14, 2019   •  17 views

#Education

शिक्षा का गिरता स्तर,समाज के लिये एक चिंतनीय पहलु। मेरी एक विनती विधि व्यवस्था को संचालित करने वाले नौकरशाहों और राजनेताओं से कि वो अविलंब कोई कारगर कदम उठाएं, और गरीब के बच्चों को गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी के दलदल से निजात दिलाएं

आज गरीबों के बुनियादी जरूरतों को समझने वाले कितने हैं ,और अगर समझते भी हैं तो इसका समर्थन करने वाले कितने हैं....???? उन्हें क्या मतलब आम इंसानों के तकलीफों से.... आज के बुद्धिजीवियों को धार्मिक और जातिगत मुददे तो दीजिये, वो अनायास हजारो की संख्या में क़तार में खड़े मिलेंगे अपने विचार व्यक्त करने को।

ये बुनियादी जरूरतें उन्हें मिलेगा कैसे और दिलायेगा कौन। आजादी के 71 साल होने को आया। और उन 71 सालों में हम सबों ने कई क्रांति देखी। कई महान सामजिक चिंतक देश को मिला। सबो के प्रयास अमूल्य रहें । बाबा साहेब से लेकर फुले महान लोहिया वी पी सिंह कर्पूरी ठाकुर सबो ने प्रयास किया समाज में समरसता लाने का, बुद्धिजीवियों का बौद्धिक विकास करने का।

पर भूल कहाँ हुयी जो आज तक हम उन्हें अच्छे भविष्य का सुनहरे सपने ही दिखाते हैं हकीकत वही है जो आज भी राजा महाराजाओं और अंग्रजो के ज़माने में था।

आज तो ढेरों प्रावधान हैं दलितों शोषितों और किसानों के लीये पर क्या वो लाभान्वित हो पा रहे हैं? हकीकत यहाँ यह है कि उन्हें ऐसे विधि व्यवस्थाओं के बीच रहना पड़ता है जहाँ मनरेगा, छात्रवृति, कृषि ऋण और तमाम योजनाएं होने के वावजूद वो पूर्ण लाभ नहीं ले पाते और अगर लाभान्वित होने का प्रयास भी करते हैं तो उसमें भी उन्हें अंशदान देना पड़ता है उन वुद्धिजीवियों को जिनका जात और धर्म सिर्फ पैसा कमाना है भले उस पर एकाधिकार सिर्फ किसी दलित शोषित और किसी गरीब किसान का था।दोष सिर्फ राजनेताओं का नही हैं नौकरशाह कम कुसूरवार नही है।

सामाजिक आवाज तो मिल गयी उन्हें पर जागरूकता और शिक्षा उनसे आज भी कोसो दूर है और यही वजह है कि उनकी आवाज को आज भी तरहीज नही मिलता और उनकी आवाज को ऐसी आवाज की संज्ञा दी जाती है कि कम पढ़े लिखे होने की वजह से ये उलजुलूल हो हल्ला मचाते है और उनकी आवाज को वही दबा दी जाती है या दफना दी जाती है।उनसे क़ानून के प्रावधान और योजनाओं के विवरण मांगे जाते हैं। उनके हक़ और अधिकारों पर आज भी उनका अधिकार नही बल्कि उन लोगों का अधिकार है जो अपने पदों और शिक्षा का गलत इस्तेमाल करते हैं।

आज भी हमारी मानसिकता संकीर्ण है जिसमे हम आज भी उनका सिर्फ स्वागत करते है जिनका स्टेटस हमसे मेल खाता हो या फिर हमसे बेहतर हो। पर मुझे नफरत है अमीरों की दोस्ती। गरीबो को प्यार दूँ तो उनसे रिश्ते अमिट होगा पर अमीरों के दोस्त बदलते है अपने सुविधा अनुसार। मुझे गर्व होता है जब भी मैं किसी कम पैसे वाले के साथ वक़्त गुजारता हूँ।

जब तक हमारी जिम्मेवारी समाज के प्रति भूखों के प्रति दलितों के प्रति शोषितों के प्रति खुद के द्वारा तय नही होगी तब तक विधि व्यवस्था यूँ ही राम भरोसे चलती रहेगी। जिसे जहाँ मौका मिलता है बस खुद को ताकतवर और धनवान बनाने में लगे रहते हैं। ये कैसे बुद्धिजीवियों के समाज में हम रहते हैं जो नाम के वुद्धिजीवी हैं पर ज्यादातर का आज भी बौद्धिक विकास नही हो पाया, क्यों? हम समाज में रहने वाले भी कम कुसूरवार नही है यह हम ही तो है जो उन्हें हौसले देते है और वो अपनी कालगुजरियों को बदस्तूर जारी रखते हैं।

अगर मैं दुनिया नही बदल सकता तो कोई बात नही पर कम से कम दुनिया को एक बेहतरीन तोहफा जरूर दे सकता हूँ खुद को बदलकर और एक नेक इंसान बनकर। मेरे रास्ते कठिन तो हैं पर रात्रि विश्राम में जो नींद आती है वो एक सुकून भरा होता है।

जीवन में दो वक़्त की रोटी,रहने को घर, भरा पूरा परिवार और साथ में अगर एक अच्छी सोच हो जो किसी भी स्वार्थ से परे हो तो जीने का मजा क्या होता है कैसे शब्दों में बताऊँ, यूँ लगता है जैसे जिंदगी कितनी छोटी है इसके उतार चढ़ाव और हर पहलुओं को समझने के लीये। कुछ मानवता के लिये अभी तक न कर पाने की टीस। काश ये जिंदगी कुछ लंबी खिंच जाये और मैं अपने बच्चों के अलावा भी ढेरों उन असहाय बच्चों के काम आ पाऊँ जिनकी निःस्वार्थ मुस्कान से भरी मदद की गुहार मुझे बरबस वो अपनी ओर खींचते है।

और किसी भी विषय पर आपके साथ अपने विचार साझा करना वही निःस्वार्थ जीवन का हिस्सा है।

उन्हें कागजी शिक्षा की जरुरत नही बल्कि गुणवत्ता भरी शिक्षा चाहिये जो आपके और हमारे बच्चे पा रहे हैं। अगर आप ऐसा कुछ कर पाये की उनके बच्चे भी हमारे बच्चे जैसे निजी विद्यालय जा सकें या फिर उनके लिये कुछ ऐसी व्यवस्था का निर्माण हो जहाँ उन्हें भी एक बेहतर उड़ान के लिये सजा मंच मिल पाये तो मुझे बेहद खुशी होगी।

आपके द्वारा अगर बाल मजदूरों के लिये दलितों और शोषितों के बच्चों के लिये गरीब किसानों के बच्चों के लीये कुछ जमीनी पहल होगी तब आप मेरे लीये और उनके लिये भगवान सरीखे होंगे और मैं तो आपको ईश्वर से भी ऊपर की श्रेणी में रखूँगा।

शिक्षा का गिरते स्तर के लिये जिम्मेवार कौन???

आज की शिक्षा की व्यवस्था एक वरदान या अभिशाप????????

शिक्षा से याद आया। आज के 15-20 साल पहले सरकारी विद्यालयों में शिक्षा की तस्वीर कुछ अलग थी। पर आज की सरकारी शिक्षा व्यवस्था दम तोड़ने लगी है।जब से शिक्षा,माफियाओं के लिये कमाने का जरिया बन गया तब से तो और कोई देखने वाला नही की गरीबों के लीये जो सरकार ने व्यवस्था बना रखी है उसमें कितनी गुणवत्ता भरी शिक्षा मुहैया कराई जा रही है।

आज तो निजी छोटे स्तर के विद्यालयों में भी 3 साल के बच्चों को प्रथम वर्ग में ही 3000 की किताबें लेनी पड़ती है और फिर उस किताब से कोई गरीब नहीं पढ़ पाता क्योंकि अगले वर्ष उन किताबों की जगह दूसरी किताब लेने को बोली जाती है। और उन पुरानी महँगी किताबों को कूड़ेदान में डाल दी जाती है।मनमानी फ़ीस और फिर किताबों और यूनिफार्म में भी अच्छी रकम बनायीं जाती है। यह कोढ़ कब खत्म होगा, कौन करेगा ,यह आज तक नहीं समझ पाया।

क्या एक सख्त कानून की जरुरत नही की निजी विद्यालय किताबों को हर साल नहीं बदलें।सरकारी और निजी विद्यालयों की किताब एक समान हो। पूर्ण बदलाव लाना सम्भव नही पर उन गरीब माँ बाप को बचाने की जरुरत है जो अपने बच्चों के सुनहरे सपनो की लालसा लिए निजी विद्यालयों का रुख करते हैं और इनके चक्रब्यूह के दलदल में अपनी पूरी जवानी खपा देते हैं। क्या ऐसे कानून नही होने चाहिये कि आर्थिक रूप से पिछड़े के बच्चों को निजी विद्यालय में कम से कम 25% की आरक्षण मिले।

एक गरीब अपने बच्चों को पढ़ाने की हिम्मत भी करता है तो उसकी पूरी कमाई माफियाओं द्वारा निगल ली जाती है।अभिभावक खुद गंदे-फटे कपड़े पहन कर अपने बच्चों के लिये हर साल विद्यालय के द्वारा बदली पोशाकों को खरीदने की तरहीज देते है तथा वो दो वक़्त की रोटी कम खाते हुये भी,उनकी शिक्षा को ही तरहीज देते हैं। पर जैसे जैसे समय गुजरता है तब यह एहसास होता है कि सरकारी व्यवस्था होने के वावजूद हमें उसका लाभ नही मिल पाया और हम सबों ने अपनी कमाई का आधा हिस्सा अपने बच्चों के शिक्षा पर ही खर्च कर डाले।

खुद के भी सपने और अरमान होते हैं जो माँ बाप की गरीबी की वजह से पूरा नही हो पाता और फिर जब हम जवानी के दहलीज पर कदम रखते हैं तब अपने बच्चों के खातिर अपने उन अधूरी चाहतों का गला घोट देते है।

ज्यादा पीछे नहीं जाये, महज 20 साल पहले की दसवीं वर्ग में सरकारी शिक्षा के द्वारा प्राप्त किया गया भाषा की ज्ञान, बौद्धिक ज्ञान और देश प्रेम की सिख जो हमें अपने शिक्षकों से प्राप्त हुई वो आज के दौर में स्नातक किये छात्र को शायद नहीं मिल पाती।

आज इसे विडम्बना ही कह लें कि शिक्षित और योग्य उम्मीदवार नौकरी की तलाश में न जाने कौन-कौन से कार्य करने को विवश है और ज्यादातर अयोग्य उम्मीदवार शिक्षक बन उन गरीब के बच्चों के लिये सुनहरे भविष्य को रौंदने का घिनौना और अनैतिक कार्य को निष्पादित कर रहे हैं।

अगर यही देश की दिशा होगी तो आगे भी यह शिक्षा की व्यवस्था हमारे समाज को कोढ़ बनाती रहेगी। आज समाज में चेतना, बौद्धिक विकास की सख्त जरूरत है ताकी वैश्वीकरण के दौर में गुणवत्ता से भरी एक मुफ्त और प्रतिस्पर्धात्मक शिक्षा के हक के लिये लोग आवाज उठाएं, ताकि हमारे समाज में सामाजिक समरसता आ सके।

शिक्षा एक ऐसी पहलु है जिस पर कागजी नही बल्कि पूर्ण रूपेण क्रांति की जरुरत है क्योंकि यह हथियार अगर दलितों,शोषितों तथा गरीब किसान के बच्चों को मिल जाये तो वो भी समाज के मुख्यधारा से जुड़कर खुद के लिये एक सुनहरे सपने सजा सकते हैं।

काश ऐसा हो पाता। काश हम उस दुनिया में जी पाता जहाँ पर किसी भी गरीब को ठेपा लगाने की जरुरत नही पड़ती।

खुद में और खुद से संवाद करना वो पहली कड़ी है जो हमे निडर, निःस्वार्थ, जागरूक और एक जिम्मेवार नागरिक बनाता है। बस मैं खुद से खुद के लिये ही संवाद किये जाता हूँ। मेरे विचार अच्छे हों या बुरे, कम से कम उन बिंदुओं पर खुद को एक नेकदिली इंसान के रूप में अहसास तो दे जाता है ताकि मुझे इन्सानियत का बोध हो और मैं एक नेक इंसान बनने की पहली सीढ़ी को चढ़ पाऊँ।

आपका हमेशा आपका प्रिय ,

Raju Ranjan

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