सकारात्मक जीवन।

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Shristy Jain
Apr 05, 2019   •  94 views

सकारात्मकता क्या होती है? क्या हम हमेशा सकारात्मक रह सकते हैं? सकारात्मकता का अर्थ क्या होता है? यह किस तरह हमारे जीवन को स्वर्ग बनाती है?

सकारात्मकता का अर्थ यह नहीं होता कि हमेशा खुश रहो या फिर बुरी परिस्थितियों को अनदेखा करके हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाओ, बल्कि सकारात्मकता तो वह होती है जो हमें कभी हार स्वीकार ही ना करने दे, हमें मानसिक रूप से इतना शक्तिशाली बनाएं कि हम अपने जीवन की हर एक परिस्थिति का सामना डटकर करें।

सकारात्मकता दो तरह से प्राप्त होती है। एक जब हमें कोई अपना जैसे हमारे मित्र, परिवार या कोई सज्जन व्यक्ति हमें जीवन की परिस्थितियों से लड़ना सिखाए और हमें उन सबका सामना स्वयं करने के लिए प्रेरित करें और दूसरा यह कि हम स्वयं को प्रेरित करें और सकारात्मकता के पथ की ओर कदम बढ़ाए।

जीवन में ऐसी कई परिस्थितियां आती है जो हमारे अनुरूप नहीं होती उन परिस्थितियों में यदि हम सकारात्मक रहकर उन गुत्थियों को सुलझाए तो हमें कोई भी नकारात्मक ऊर्जा अपने काबू में नहीं कर सकती।

महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, रानी लक्ष्मी बाई, बिल गेट्स, स्टीव जॉब्स जैसे महान दिग्गजों ने भी सकारात्मकता का उदाहरण पेश किया हैं। एक सत्य यह भी है कि जैसा हम सोचते हैं वैसा बनते हैं तो क्यों ना आज से ही सकारात्मक बनने का शुभारंभ किया जाए। क्यों ना सकारात्मकता को अपने जीवन का हिस्सा बनाया जाएँ और खुशियों को आमंत्रित किया जाए।

सकारात्मक रहने से नहीं केवल हमारे रिश्ते सुधरते हैं अपितु हमारा मन और शरीर भी स्वस्थ रहते हैं। हमारे अंदर की शक्तियां जागृत होने लगती हैं और हमें एक नई दिशा की ओर अग्रसर करने में सकारात्मकता की बहुत ही अहम भूमिका रहती है। जब हम हर बुराई में अच्छाई ढूंढने लगते हैं तो हमें सब कुछ स्वयं ही अच्छा लगने लगता है और हमारी सारी जटिल समस्याएं अपने हल के साथ हमारे सामने खड़ी हुई मिलती है।

सकारात्मकता को हम अपने जीवन का रामबाण कह सकते हैं किंतु अक्सर लोग सकारात्मकता में धोखा खा जाते हैं और वे हर चीज में अच्छाई ढूंढने के चलते अपनी परेशानियों को अच्छा समझ कर टाल देते हैं।सकारात्मकता का अर्थ यह नहीं होता कि आप अपनी परेशानियों को अच्छा बोलकर उसको वही टाल दे, अपितु आप की समस्या को सुलझाने का तरीका भी आपकी सकारात्मक सोच को प्रदर्शित करता है।अतः सकारात्मक बने रहे किंतु इतने भी नहीं कि आपको आपकी समस्याएं भी सकारात्मक लगने लगे और आप उनको टालने लगे।

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