समाज शास्त्र का अर्थ ------------------------
समाजशास्त्र एक नया अनुशासन है। अपने शाब्दिक अर्थ में समाजशास्त्र का अर्थ है- समाज का विज्ञान। इसके लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द सोशियोलॉजी (sociology) लैटिन भाषा के सोसस तथा ग्रीक भाषा के लोगस, दो शब्दों से मिलकर बना है जिनका अर्थ क्रमशः समाज तथा विज्ञान है। इस प्रकार सोशियोलॉजी शब्द का अर्थ समाज का विज्ञान होता है।
समाजशास्त्र का भारतीय इतिहास--------------
अति प्राचीन काल से समाज शब्द का प्रयोग मनुष्य के समूह विशेष के लिए होता रहा है। जैसे- भारतीय समाज, ब्राह्मण समाज, शिक्षित समाज, धनी समाज इत्यादि। समाज के इस व्यवहारिक पक्ष का अध्ययन सभ्यता के विकास के साथ-साथ प्रारंभ हो गया था। हमारे यहां के आदि ग्रंथ वेदों में मनुष्य के सामाजिक जीवन पर प्रकाश डाला गया है। इनमें पति के पत्नी के प्रति, पत्नी के पति के प्रति, माता पिता के पुत्र के प्रति इत्यादि व्यक्तियों के प्रति कर्तव्य की व्याख्या की गई है। मनु द्वारा रचित मनुस्मृति में कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था उसके महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है और व्यक्ति तथा व्यक्ति, व्यक्ति तथा समाज तथा सभी के एक दूसरे के प्रति कर्तव्य को निश्चित किया गया है। भारतीय समाज को व्यवस्थित करने में इसका बड़ा योगदान है। इसे भारतीय समाज का आदि ग्रंथ माना जा सकता है।
समाजशास्त्र का पाश्चात्य इतिहास--------------
भारत देश के बाद इस क्षेत्र में यूनान का नाम आता है। यूनानी दार्शनिक 'प्लेटो' पश्चात जगत में सबसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने समाज के स्वरूप की व्याख्या करने का प्रयत्न किया। उसके बाद उनके शिष्य अरस्तु ने मनुष्य को एक चेतन एवं सामाजिक प्राणी के रूप में स्वीकार कर उसके आपसी संबंधों के अध्ययन का शुभारंभ किया। पाश्चात्य जगत में यह दोनों व्यक्ति समाजशास्त्र के विचारक माने जाते हैं।
एक स्वतंत्र शास्त्र के रूप में समाजशास्त्र का विकास 19वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ। फ्रांसीसी दार्शनिक काम्टे सबसे पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने समाज के वैज्ञानिक अध्ययन का शुभारंभ किया। प्रारंभ में तो उन्होंने अपने इस अध्ययन को सोशल फिजिक्स की संज्ञा दी परंतु आगे चलकर इसके लिए सोशियोलॉजी शब्द का प्रयोग किया गया। काम्टे ही समाजशास्त्र के जनक माने जाते हैं। काम्टे के बाद इंग्लैंड के हरबर्ट स्पेंसर ने क्षेत्र में कार्य किया 1876 में उनकी प्रिंसिपल्स ऑफ़ सोशियोलॉजी(principles of sociology) नामक पुस्तक प्रकाशित हुई। इसमें समाजशास्त्र के स्वरूप एवं विषय क्षेत्र को निश्चित करने का प्रयत्न किया गया है। इसके बाद फ्रैडरिक, मैकाइवर तथा मैरिल ने इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए।
समाजशास्त्र की परिभाषा-----------------------
समाजशास्त्र को अनेक समाजशास्त्री ने भिन्न-भिन्न तरीके से परिभाषित किया है। जिसका वर्णन नीचे दिया जा रहा है-
गिडिंग्स के शब्दों में-
समाजशास्त्र समग्र रूप से समाज का क्रमबद्ध वर्णन और व्याख्या है।
मैकाइवर तथा पेज समाज के स्थान पर सामाजिक संबंधों पर अधिक बल दिया है। उनके शब्दों में-
समाजशास्त्र सामाजिक संबंधों का व्यवस्थित अध्ययन है, सामाजिक संबंधों के जाल को हम समाज कहते हैं।
गिलिन के शब्दों में-
अपने विस्तृत अर्थ में समाजशास्त्र जीवित प्राणियों के एक दूसरे के संपर्क में आने से उत्पन्न अंतःक्रियाओं का अध्ययन है।
मैक्स वेबर के शब्दों में-
समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक क्रियाओं का विश्लेषणात्मक बोध कराता है।
अंततः इन सभी समाजशास्त्री की परिभाषाओं के आधार पर समाजशास्त्र के बारे में हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र ज्ञान की वह शाखा है जिसमें समाज अथवा सामाजिक संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है और सामाजिक संबंधों को समझने के लिए सामाजिक क्रियाओं, सामाजिक अंतःक्रियाओं और इन सब क्रियाओं के परिणामों का अध्ययन किया जाता है।