कृत्रिम बुद्धिमत्ता - कितना सही, कितना गलत …….

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Debarpita Banerjee
Oct 31, 2019   •  11 views

आज के ज़माने में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग जाने-अनजाने हर व्यक्ति करता है। परंतु, कृत्रिम बुद्धिमत्ता है क्या?.... यह बहुत कम लोग ही जानते हैं। असल में कृत्रिम बुद्धिमत्ता मशीनों के द्वारा प्रयोग की गई बुद्धि को सूचित करती है। सरल शब्दों में कहें तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता मनुष्य या जीव जंतुओं के द्वारा प्रयोग की गई प्राकृतिक बुद्धिमत्ता से अलग मशीनों के द्वारा प्रयोग की गई बुद्धि को कहा जाता है। ऐनद्रेस कलपान और माइकल हेनलिन कृत्रिम बुद्धिमत्ता को “किसी प्रणाली की बाह्य डेटा की सही ढंग से व्याख्या करने, ऐसे डेटा से सीखने, और सुविधाजनक रूपांतरण के माध्यम से विशिष्ट लक्ष्यों और कार्यों को पूरा करने में उन सीखों का उपयोग करने की क्षमता” के रूप में परिभाषित करते हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग कंप्यूटर, स्मार्टफोंस और रोबोट जैसे मशीनों में अक्सर किया जाता है। हालांकि, इसका प्रयोग करना कितना सही है और कितना गलत - यह तर्क का विषय है।

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आजकल लोग अनेक दैनिक कार्य के लिए अपने बुद्धिमत्ता पर कम, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर ज्यादा भरोसा किया करते हैं। जैसे मोबाइल फोन के सहारे गणित के सवालों को हल करने के लिए हम अक्सर जिस केलकुलेटर का इस्तेमाल करते हैं वह केलकुलेटर भी कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित है। स्मार्टफोंस, कंप्यूटर्स तथा ऐसे अनेक इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स कृत्रिम बुद्धिमत्ता का ही प्रयोग करते हैं। इन गैजेट्स को मनुष्य हर दिन अपने दैनिक कार्य के लिए इस्तेमाल किया करते हैं - अर्थात आज के ज़माने में मनुष्य अपने दैनिक जीवन के कार्यों के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर निर्भर करते हैं। परंतु प्राचीन काल में ऐसा नहीं था … कृत्रिम बुद्धिमत्ता का दबदबा ट्यूरिंग के ज़माने से शुरू हुआ और फैलता ही चला गया।

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एलन ट्यूरिंग एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं कंप्यूटर वैज्ञानिक थे। उन्होंने अपने कंप्यूटर सिद्धांत में यह दर्शाया था की लॉजिक गेट्स के सहारे ही कंप्यूटर चलते हैं। अर्थात कंप्यूटर उन मशीनों में से एक है जो 0 और 1 के सहारे कठिन गणितों का भी हल कर सकते हैं। यह सिद्धांत कृत्रिम बुद्धिमत्ता की सर्वप्रथम करी थी। ट्यूरिंग ने प्रस्तावित किया कि "यदि कोई मनुष्य मशीन और मानव से प्रतिक्रियाओं के बीच अंतर नहीं कर सकता है, तो मशीन को 'मानव की तरह बुद्धिमान' माना जा सकता है"। अर्थात ट्यूरिंग का यह मानना था कि कुछ मशीन ऐसे भी होते हैं जिनमें मनुष्य की तरह सोचने की क्षमता होती है और उनमें और मनुष्य में कोई अंतर नहीं होता। जैसे-जैसे विज्ञान प्रगति करता गया वैसे-वैसे वैज्ञानिक 'कृत्रिम न्यूरॉन्स' बनाने की तरफ अग्रसर होने लगे। आजकल तो वैज्ञानिक यह मानने लगे हैं की 'कृत्रिम न्यूरॉन्स' के सहारे 'कृत्रिम मस्तिष्क' भी विकसित किया जा सकता है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने मानव जीवन को अनेक रूप से सरल बना दिया है। आजकल कृत्रिम बुद्धिमत्ता के प्रयोग से अनेक कार्य सरलता से ही किए जा सकते हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता का प्रयोग स्मार्टफोंस व कंप्यूटर में तो होता ही है, इसके अलावा भी देश की सुरक्षा, चिकित्सा विज्ञान तथा शिक्षण संस्थानों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग मनुष्य के लिए अत्यंत लाभकारी साबित हुआ है।

जब भारतीय सेना सीमा के उस पार किसी फौजी को भेजने से कतराती है तब मनुष्य की जगह पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता से चलने वाले गैजेट्स तथा द्रोण के सहारे सीमा के उस पार होने वाली सभी हरकतों पर नज़र रखी जा सकती है। इस तरह सेना किसी सैनिक के जान को जोखिम में डाले बग़ैर ही दुश्मनों के सभी हरकतों को जांच सकती है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता के सहारे दूरदराज के क्षेत्रों में रहने वाले मरीज़ भी भले बड़े डॉक्टर की चिकित्सा का लाभ उठा सकते हैं। आजकल तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता के सहारे डॉक्टर रोगी से दूर रहकर भी ऑपरेशन कर देते हैं। इसका सीधा लाभ उन गरीब रोगियों को पहुँचता है जो दूरदराज के क्षेत्रों में रहने के कारण बड़े अस्पतालों तक नहीं पहुंच पाते।

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कृत्रिम बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा योगदान शिक्षण क्षेत्र में है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के सहारे शिक्षा व्यवस्था में क्रांति लाई जा सकती है। सेल्फ लर्निंग ऐप्स ना केवल छात्रों को शिक्षकों पर निर्भर रहने से बचाते हैं बल्कि शिक्षा को बहुत ज्यादा सरल तथा मनोरंजक भी बनाते हैं। कई शिक्षक भी इन ऐप्स का प्रयोग करते हैं। "स्वयम" जैसी व्यवस्थाएं तकनीकी शिक्षा को भी गरीब से गरीब छात्र के हाथों तक लाकर पहुँचाती है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग सेरेब्रल पाल्सी, डाउन सिंड्रोम तथा ऑटिज्म जैसी मानसिक कमियों को दूर करने के लिए भी की जा सकती है। एक विशेष प्रकार के रोबोट के सहारे उन मानसिक कमियों से ग्रसित बच्चों को साधारण शिक्षा मुहैया कराया जा सकता है।

ऐसे और भी अनगिनत उदाहरण है जिससे यह साबित होता है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता मनुष्य के लिए अत्यंत लाभकारी है। लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। कृत्रिम बुद्धिमत्ता के अनेक लाभ तो हैं परंतु अनेक कमियाँ भी हैं। कई बार तो कृत्रिम बुद्धिमत्ता मनुष्य के अस्तित्व के लिए ही खतरा साबित होता है। जैसे - रोबोट्स के किसी भी कार्य को मनुष्य की तुलना में आसानी से कर पाने के कारण आजकल कई संस्थानों में मनुष्य की जगह रोबोट्स को ही काम पर रखा जाता है। जिसके कारण मनुष्य की नौकरी में कमी आ रही है। इस तरह मनुष्य प्रत्यक्ष रूप से कृत्रिम बुद्धिमत्ता से क्षतिग्रस्त है। परोक्ष रूप से भी, जब मनुष्य छोटे से छोटे कार्य के लिए भी अपने बुद्धि का प्रयोग करने के बजाय कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर निर्भर करते हैं तो यह मनुष्य के विचार-क्षमता को घटाता है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन भी दूर नहीं जब मनुष्य पूरी तरह से कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर ही निर्भर हो जाएगा।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता कितना सही है और कितना गलत इस पर कई नामी वैज्ञानिक आपस में तर्क करते आ रहे हैं। जैसे मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने यह दावा किया था कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता एक दिन मानव के अस्तित्व को ही खत्म कर देगी। लेकिन प्रसिद्ध कंप्यूटर वैज्ञानिक तथा एप्पल कंपनी के सीईओ स्टीव जॉब्स का यह मानना था कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता मनुष्य को उस ऊंचाई तक पहुंचा देगी जहां तक पहुंच पाना आज तक अकल्पनीय था।

अर्थात, कृत्रिम बुद्धिमत्ता कितना सही है और कितना गलत यह हम जैसे सामान्य मनुष्य तो दूर की बात, नामी वैज्ञानिक भी दावे के साथ नहीं कह सकते। हम तो सिर्फ इतना ही कह सकते हैं कि किसी भी चीज़ का आवश्यकता से अधिक उपयोग करना हानिकारक होता है।

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