बुरके से झलकती आँखें

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Shriya Kataria
Mar 23, 2019   •  127 views

उस दिन भी हर रोज़ की तरह चांदनी चौक वैसा ही लग रहा था।
वो पकवानों की महक, और दुकानदारों की आवाज़
वो लोगों की चेहेक महक, और वहां पर बस्ती एक अलग सी मिठास।
उस दिन आँखों को कुछ ऐसा छुआ, की कदम थम गए और दिल में कुछ हुआ।
एक खूबसूरत सी लड़की की आंखें बुरके से यूं झलक रही थी,
मानो एक बच्चे की तरह कुछ पाने के लिए तरस रही थी।
उस चीज़ को देखने के लिए मैं कुछ कदम आगे बढ़ा
और देखते ही दिल में ख्याल आया कि ये क्या खास चीज़ हुई भला?
दुकान के बाहर गुलाबी रंग का एक जोड़ा लटक रहा था
जिस पर, उस बुरके वाली का ध्यान बार – बार अटक रहा था।
बहुत सोचने के बाद मेरे दिल में ख्याल आया,
और उस बुरके को देखकर मेरे हर सवाल ने अपना जवाब पाया।
वो काले रंग से ढका बदन मानो उन रंगों को ओढ़ने के लिए तरस रहा था।
उस लड़की की कलाइयों में समाज की बेड़ियां झलक रही थी
वो चुप थी पर उसकी आँखों की नमी कुछ कह रही थी।
वो प्यारी सी आँखें और उनमें चुपा गहरा सा एक राज़ था
उस रंगीन जोड़े को पाना, बस यही उसका प्रयास था।
देखते ही देखते वो लड़की मेरी नज़रों से दूर जाती गई ,
और जाते – जाते अपने हाल दर्शाती गई।
वो बुरके से झलकती आँखें भी लाचार हैं,
क्युकी ऐसा ही अपना समाज है।
ऐसा ही अपना समाज है।

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