ज़ुल्म सहते हो क्यों?
यह दर्द सहते हो क्यों
हकदार नहीं हो तुम इसके
फिर शांत रहते हो क्यों ?
यह तुम्हारी आँखे जो नम हैं
इनमे छिपे बहुत से गम हैं
रक्त बहने देते हो क्यों
आख़िर ज़ुल्म सहते हो क्यों?
कठपुतली बनकर रहते हो क्यों
बेवजह इन ज़ख्मों को सहते हो क्यों
कोई बोझ नहीं इस देश का गौरव हो तुम
आख़िर ज़ुल्म सहते हो क्यों?