संविधान की आत्मा।

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Shristy Jain
Mar 19, 2019   •  5 views

संविधान की धारा 2 में यह कहा गया है कि- "संसद विधि द्वारा ऐसे निबंध नो और शर्तों पर जो यह वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों को प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी"। अभिप्राय यह हुआ कि नए राज्यों का निर्माण संसद द्वारा कानून बनाकर किया जाता है, अर्थात नए राज्य का निर्माण करने की शक्तियां हमारी संसद को है। संविधान की धारा 3 में "किसी राज्य के क्षेत्र को बढ़ाने घटाने उसकी सीमाओं में परिवर्तन करने, दो राज्यों को मिलाकर एक राज्य करने अथवा राज्यों के नाम और परिवर्तन आदि करने की शक्तियां भी संसद को प्रदान की गई है"। अर्थात संसद कानून बनाकर किसी भी राज्य का नाम बदल सकती है, उसके क्षेत्र को बढ़ा घटा सकती है, उसकी सीमाओं में परिवर्तन कर सकती है।

इन्हीं शक्तियों का प्रयोग कर केंद्र सरकार ने समय-समय पर अनेक राज्यों का गठन किया है। कई बार राज्य के निर्माण को लेकर विवाद भी उत्पन्न हो जाता है। ऐसे विवादों का निपटारा हमारे उच्च न्यायालय द्वारा किया जाता है। उदाहरण के तौर पर जब आंध्र प्रदेश का विभाजन कर तेलंगना का नया राज्य बनाया गया तो जेपी राव बनाम भारत संघ तथा डॉ सुब्रमण्यम बनाम भारत सरकार के मामलों में इसे चुनौती दी गई। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस चुनौती को नामंजूर करते हुए कहा कि- "संसद द्वारा किसी राज्य का विभाजन, गठन, पुनर्गठन आदि किया जा सकता है"। समय-समय पर देश के विभिन्न राज्य में विभिन्न कारणों से अलग राज्य निर्माण की मांग उठती रहती है। इसको लेकर आंदोलन होते हैं।

केंद्र सरकार द्वारा उचित आधार पर नए राज्यों का गठन किया जाता है। सन् 2000 में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं बिहार जैसे विशाल राज्यों के कुछ हिस्से को अलग कर क्रमशः उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ एवं झारखंड का गठन किया गया ताकि विकास में उपेक्षित क्षेत्रों का त्वरित विकास हो सके।
हमारे देश के आजाद होने के बाद कई राज्य बनाए गए, कई राज्य समाप्त किए गए, कई राज्यों की सीमा में परिवर्तन किया गया, कई राज्यों के नाम बदले गए। जैसे उत्तरांचल का नाम बदलकर उत्तराखंड किया गया आदि। वर्तमान में हमारे भारत संघ में कुल 29 राज्य तथा 7 केंद्र शासित राज्य हैं।

इस प्रकार भारत अनेक राज्यों एवं संघ राज्य क्षेत्रों से मिलकर बना एक विशाल देश है। जहाँ अनेक कार्य जैसे शिक्षा चिकित्सा, कानून, व्यवस्था में राज्य अपने निर्णय स्वयं लेकर स्वतंत्र कार्य कर सकते हैं, किंतु रक्षा, विदेश, मुद्रा आदि मामलों में केंद्रीय सरकार का निर्णय ही सर्वोपरि होता है।

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