दोस्ती- एक वरदान।

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Shristy Jain
Feb 21, 2019   •  12 views

दोस्त एक ऐसा प्राणी जिसकी विषय में सुनते ही आपके चेहरे पर स्वयं ही मुस्कुराहट आ जाती है। जिसकी यादों को सोचकर ही आप प्रफुल्लित हो उठते हो। दोस्तों आपने अपने जीवन में खूब दोस्त बनाए होंगे पर एक होता है ना जिगरी दोस्त जिसको हमारे सारे अच्छे बुरे सबकी खबर रहती है। जो हमारे लिए सदैव तत्पर रहता है जिसकी जिंदगी हम से ही शुरू होती है और आपकी जिंदगी उसी पर खत्मदोस्ती का रिश्ता ही एक ऐसा रिश्ता होता है जो हम खुद से बनाते हैं। उससे हमारा कोई खून का रिश्ता नहीं होता। पर दिल का रिश्ता जरूर होता है जो हम मरने के दौरान भी याद रखते हैं। सारी मस्ती, सारे लड़ाई-झगड़े, सारा प्यार एक दोस्त से ही तो करते हैं। जब वह नाराज हो जाता है तो ऐसा लगता है जैसे दुनिया उजड़ गई हो, सब खत्म हो गया हो,पर जैसे ही पता चलता है कि वह तो मजाक कर रहा था तो उसी के पीछे चप्पल लेकर दौड़ते हैं और उससे यह सब ना करने के लिए बोलते हैं। हमारी हर मुसीबत में साथ खड़े रहने वाले दोस्त ही तो होते हैं।जिसके पास दोस्त होते हैं उसके पास भगवान के रूप होते हैं क्योंकि दोस्ती ही खुद में एक वरदान होती है जो नसीब वालों के नसीब में ही लिखी होती है।

दोस्ती एक बार की जाती है और सौ बार निभाई जाती है ,यही नियम होता है दोस्ती का।आपने भी तो दोस्ती की होगी ,तो आप तो भली-भाँति यह जानते ही होगे।दोस्ती निभाने के लतीफे तो कई लोग गाते फिरते हैं ,किंतु निभाने वाले शांत रहकर भी दोस्ती को निभा जाते हैं।यदि कोई दोस्त गलत राह पर चल रहा है तो एक दोस्त का कर्तव्य होता है कि या तो कोमल हृदय से या कठोर वचनों से अपने दोस्त को समझाए और हर परिस्थिति में उसको उस गलत रास्ते से खींचकर अपने पास ले आए।दोस्ती प्यार से भी बढ़कर होती है यह शायद ही गलत है क्योंकि जितना प्यार एक दोस्त अपने दोस्त पर लुटा देता है उतना शायद ही किसी रिश्ते में कोई लुटा सके।वैसे भी हर रिश्ते की शुरुआत दोस्ती से हो तो आगे जाकर उस रिश्ते में चार चांद स्वयं ही लग जाने है।

आजकल तो दोस्ती सिर्फ नाम की रह गई है।कुछ लोग पैसों के लिए या फिर किसी लालच के अनुरूप रहकर एक दूसरे से दोस्ती करते हैं। इन्हीं लोगों ने दोस्ती की परिभाषा को पूर्ण रूप से बदनाम कर दिया है। दोस्ती तो वह पवित्र रिश्ता है जिसमें ना ही कोई लालच ना ही कोई बैर एवं न ही कोई बुरी भावना होती है, अपितु इसमें तो सिर्फ प्रेम और स्नेह का स्वाद होता है।

कृष्ण और सुदामा की दोस्ती तो जगत प्रसिद्ध है कि कैसे श्री कृष्ण ने अपने दोस्त सुदामा का आदर सत्कार किया।उन्होंने बिना किसी घमंड और भेदभाव के अपने दोस्त का सम्मान ही नहीं अपितु उसको चावल के एक दाना देकर उसकी सहायता भी की जिससे उसकी दरिद्रता ही दूर हो गई थी। एक राजा होते हुए भी कभी भी श्रीकृष्ण के मन में अपने दोस्त के लिए ऊंच-नीच का भाव नहीं आया। यद्यपि आज की दुनिया में तो अमीरी गरीबी का यह आलम है कि अमीर सिर्फ अमीर के साथ ही दोस्ती रखना पसंद करता है। गरीब को तो पूछता तक नहीं है।

दोस्ती करो तो ऐसी करो कि दुनिया देखती रह जाए और यदि दो में से एक साथ ना दिखे तो पूछे कि दूसरे वाला कहां है।

"मुबारक हो आपको दोस्ती का यह आलम,

सलामत रहे आप और आपकी दोस्ती का यह बंधन"।।

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