परिवावाद एक ऐसा शब्द जिसकी जड़े भारतीय समाज में इस कदर घर बना ली है , जिसे निकालना अब नामुमकिन सा हो गया है।
आज भारत में परिवारवद का ऐसा दौर छाया हुआ है , की आज हर एक व्यक्ति यही आश करता है कि उसका काम उसके सूत्रों या रिश्तेदरों की सहायता से हो ।
शायद ही कोई ऐसा पेशा परिवारवाद से अछूता होगा जिस में इसका प्रभाव ना पड़ा हो , आज चा हे राजनीति हो या सिनेमा जगत हर जगह परिवारवाद का ही बोल - बाला है।
परिवावाद का आशय किसी भी कार्य जैसे - राजनीति , मनोरंजन, खेल आदि में अपने रिश्तेदारों का पक्ष लेना है , जिससे उन्हें काम करने का मौका मिल सके।
हमारे भारतीय समाज में भाई - भतीजावाद की अवधारणा को गर्व और सम्मानजनक दृष्टि से देखा जाता है ।
परिवावाद का नज़ारा राजनीति और सिनेमा जगत में खास कर के देखने को मिलता है , राजनीति में इसका प्रभाव इस कदर छाया हुआ है , की बिना किसी सुत्र या सम्पर्क के आज युवाओं का राजनीति में कदम रखना अंधरे में तीर चलने जैसा हो गया है , जो शायद ही निशाने पर लगे !
जो प्रथा आज से कई वर्षों पहले तानाशाही राज में चली आ रही थी , वह आज लोकतंत्र में भी उसी रूप में आज भी है , ना ही उसकी अवधारणा में परिवर्तन आया है ना ही लोगो के विचारो में प्राचीन काल से ही परिवारवाद या , यूं कहे भाई-भतीजावाद को समाप्त करने की कोशिश की जा रही है , परन्तु आज के इस आधुनिक युग में भी इसको हटाना नामुमकिन सा हो गया है , आज भी इसका प्रभाव उसी प्रकार है जिस प्रकार प्राचीन काल में हुआ करता था ।
जिसके कारण उन लोगों का हनन हो रहा है जिनके पास हुनर और काबिलियत तो है पर कहीं न कही इस भाई - भतीजावाद के कारण उनको वो अवसर नहीं मिल पा रहा जो उनको मिलना चाहिए या जिनके वो हकदार है इस परिवारवाद से व्यक्ति तथा समाज दोनों पर ही एक गहरा तथा नकारात्मक प्रभाव पड़ता है ।
अगर हमें एक स्वस्थ तथा विकसित समाज चाहिए तो भाई - भतीजावाद की इस धारणा
को जड़ से समाप्त करना पड़ेगा जिससे कि हम एक कुशल तथा विकसित समाज की कल्पना की जा सके ।