मैं कला प्रेमी ठीक हूँ

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Mahak Gupta
Sep 10, 2019   •  5 views

आज की तेजी से दौड़ती दुनिया में रिश्तों की अहमियत कहीं पीछे ही रह गईं हैं। स्वयं को ऊँचा उठाने के लोभ में कईं रिश्तों को बेपरवाही से कुचला जा रहा हैं। यह कविता रिश्तों की महत्ता बताने की मेरी एक छोटी सी कोशिश हैं ।

पहले कला प्रेमी थी,

तो हर रिश्ते में चाशनी सी मिठास थी।

जब से गणित समझने लगी,

रिश्तों की मिठास गायब होने लगी।

पहले हर रिश्ता अपना लगता था,

अब हर रिश्ता मतलब का लगता हैं ।

पहले रिश्ते मन से बँधते थे,

अब रिश्ते धन से बँधते हैं ।

पहले रिश्तों का औदा होता था,

अब रिश्तों का सौदा होता हैं।

पहले रिश्ते संजोने के लिए खामोशी काफी थी,

अब अल्फाज भी कम हैं।

पहले हर रिश्ता अहम था,

अब रिश्ता होना ही वहम हैं।

इसी उलझन में उलझी हुई हूँ !

अगर, मैं गणित नहीं समझूंगी तो,
रिश्तों के पीछे छुपी काली परछाई के सच से रूबरू नहीं हो पाऊँगी।

और अगर, मैं गणित समझ गईं तो,

कहीं, मेरे रिश्तों की महक खत्म न हो जाए।

इसीलिए, मैं तो कला प्रेमी ही ठीक हूँ।

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