महिला सशक्तिकरण

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Juhi Tomar
Apr 12, 2019   •  24 views

महिला सशक्तिकरण का अर्थ होता है जब महिला अपने निजीस्वतंत्रता औऱ स्वयं के फैसले लेने के लिए महिलाओं को अधिकार देना ही महिला सशक्तिकरण कहलाता है। समाज मे जब जितना पुरूष का हक है स्वतंत्र रहने का उतना ही महिलाओं को भी हक़ है स्वतंत्र रहने का। महिलाओं को स्वच्छ और उपयुकत पर्यवारण की जरूरत है जिसे की वो हर छेत्र में अपना खुद का फैसला ले सके चाहे वो स्वयं ,देश , परिवारया समाज को लेकर हो।

आज भी अगर समाज में देखा जाए तो महिलाये जो नॉकरी करती है उन्हें बहुत सारी परेशानियों का सामना कर पा जाता है । और बहुत सारे चल रहे प्राशनो का उत्तर ढूंढना पर जाता है जैसे कि :

1) क्या ये महत्वपूर्ण है कि जल्दी से जल्दी शाम का काम खत्म करके आ जाना घर या फिर उस महिला को अपने बॉस से सुबह के समय कम करने के लिए आज्ञा लेना।

2)क्या में रात में जिस रास्ते से जाती हु कही वो सूनसान तो नही या फिर वहा कोई लड़का तो खड़ा तो नही तो फिर दूसरा रास्ते से आना जाना करना।

3)मैं क्या पहनू क्या नही पहनू तकि कोई बुरा नहि माने , शरीरढ़का है कि नही ।

इस तरह की परेशानियां और सवालो को बीच झूझति रहती है। हमारे देश मे नारियों की क्या परिस्थिति है , इस बात का अंदाजा इस चीज से लगाया जा सकता है ,की अभी भी भारतमें ऐसे कई गांव है जहा कि महिला का जीवा चार दिवारी में सिमटकर रह गया है।

अगर आज भी देखा जाए तो हमारे देश की महिलाओं की संख्या बहुत कम है जो काम करती है । कहि न कही आज पढ़ी लिखी हुई महिला भी अत्याचारों के खिलाफ आवाज़ नही उठा पाती है उनको ऐसा ही जीवन जीना पड़ जाता है जिसके वो विरुद्ध है।

भारत का महिला आरक्षण बिल

किसी भी देश को आगे बढ़ाने के लिए सभी महत्वपुर्ण फैसले उसकी संसद में ही लिए जाते है परंतु उसी ओर हमारी संसद में अगर महिला सांसदों की संख्या देखी जाए तो वो ना के बराबर दिखती है । हमारे देश की महिलाओं की भूमिका देश कोचलाने में ज्यादा खास नही है। इसकी वजह कहि न कही उन पर अत्याचार करना या फिर किडनैप करना इन सब के डर की वजह से बहुत ही कम भूमिका निभा पाति है।

घरेलू हिंसा में कमी

घरेलू हिंसा एक ऐसी चीज़ होती है , जो की किसी भी महिला के साथ हो सकती है । ये जरूरी नही है कि घरेलू हिंसा केवल अनपढ़ महिलाओं के साथ ही हो परंतुशिक्षित महिलाओं के साथ भी होती है। अनपढ़ महिला इसके खिलाफ अपनी आवाज़ नही उठा पाती है और पढ़ी लिखी हुई महिला इसका विरोध कर पाती है।

आज भी अगर यह थान ले कि अगर लड़ेंगे तभी हम इन सब बेड़ियों से मुक्त हो पाएंगे। जब तक एकता नही लाओगे तब तक लड़ना उतना ही मुश्किल होगा और जिस जाल में फॅसे हो उस पर और फसते जाओगे। लड़ना सीखो वरना संसार ऐसा है जो सिर्फ खाई में धकेलता है ।

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Ad Thakur  •  5y  •  Reply
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